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________________ १५२ मायाश्चच प्रयत्नचारीको कल्याण, स्थिर अप्रयत्नचारीको तीन उपवास, अस्थिर प्रयत्नचारीको कल्याण और अस्थिर अमयत्नचारीको दो उपवास प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥ ८ ॥ मासो लघुर्मूलं मूलच्छेदोऽसकृत्पुनः । सास्त्रयः षष्ठं लघुमासोऽथ मासिकं ॥ ९ ॥ -हीं उपर्युक्त आठ पुरुषोंके चारबार असंज्ञी जीवके दो उपवास, लघुमास, मासिक, मूलच्छेद, उपवास, लघुमास और मासिक है । भावार्थधारों प्रयत्नचारी स्थिरको बारबार असंज्ञीजीवके मारने का प्रायश्चित्त दो उपवास, अप्रयत्नचारी स्थिरको कल्याण, प्रयत्नचारी अस्थिरको पंचकल्याण, अप्रयत्नचारी अस्थिरको मूलच्छेद देना चाहिए। तथा उत्तरगुणधारी प्रयत्नचारी स्थिर · उपवास, अप्रयत्नचारी स्थिरको पष्ठ- दो उपवास, अस्थिरको कल्याण, और प्रयत्नचारी अस्थिरको - पंचकल्याण प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥ २ ॥ एतत्सान्तरमाम्नातं संज्ञिनि स्यान्निरंतरं । तीव्रमंदादिकात् भावानवगम्य प्रयोजयेत् ॥१०॥ अर्थ - यह ऊपर कहा हुआ प्रायश्चित्त एकवार और वारवार असंज्ञीजीवको मारनेवाले साधुके लिए सांतर माना गया है । व्याधि आदि कारणोंका समागम मिल जाने पर जो प्राचार्यको Se
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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