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किसी स्थानपर एक गहा था उसको कुछ आदमियोंने भरकर नके बराबर कर दिया. तो जिस मनुष्यने उस गड्ढेको भरते देखा था उसके यह बुद्धि उत्पन्न नहीं होती कि यह . किया हुआ है. अब यहांपर फिर कोई शंका करे कि, तुम्हारा सप्रतिपक्ष है. क्योंकि इस अनुमानसे बाधित विषय है "त पृथ्वी आदिक किसी बुद्धिमान्की बनाई हुई नहीं है, क्योंकि उस बनानेवाला किसीने देखा नहीं. जिस जिसका वनानेवाला किस नहीं देखा उसका बनानेवाला कोई बुद्धिमान कारण नहीं . जैसे आकाशादिक" सो यहभी समीचीन नहीं है. क्योंकि जो दृश्य होता है, उसीकी अनुपलब्धिसे उसके अभावकी सिद्धि हे है. परन्तु ईश्वर तो दृश्य नहीं है इसलिये उसके अभावकी सिा नहीं हो सक्ती. जो अदृश्य पदार्थकी अनुपलब्धिसेही उसके वकी सिद्धि करोगे तो, किसी अदृश्य पिशाचके किये हुए का पिशाचकी अनुपलब्धिसे पिशाचके अभावका प्रसंग आवेगा." . प्रकारसे कर्त्तावादीने अपने पक्षका मंडन किया. अब इसका ७ किया जाता है।
कर्तृत्त्ववादके पूर्वपक्षका खण्डन. . यहांपर जो "क्षित्यादिकं बुद्धिमत्कर्तृजन्यं कार्यत्वात् । अनुमानद्वारा कार्यत्वरूप हेतुसे पृथिव्यादिको बुद्धिमत्क से जन्य सिद्ध किया है सो इस कार्यत्वरूप हेतुके चार अर्थ हो सकते हैं. एक तो कार्यत्व अर्थात् सावयवत्त्व दूसरा पूर्वमें असत्पदार्थ खकारणसत्तासमवाय, तीसरा “कृत अर्थात् किया गया" ऐसी बुद्धि होनेका विषय होना,. अथवा चतुर्थ विकारिपना. इन चार अर्थोमेंसे यदि सावयवत्वरूप अर्थ माना जावे तो इसकेभी.