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________________ [२०४] -मधुरालापी सर्व सुलक्षणसम्पन्न अतुलबली थे। इनके शरीरकी ऊंचाई ५०० धनुष और आयु ८४ लाख पूर्व (पूर्वांगं वर्ष लक्षाणमशी तिश्चतुरुत्तरा तर्गितं भवेत्पूर्व, अर्थात् ८४००००० लाख वर्षोंका एक पूर्वांग होता है और इसहीके वर्ग ८४०००००४८४००००० -७०५६०००००००००० को एक पूर्व कहते हैं) की थी इन्होंने गृहस्थाश्रमकी अवस्थामें घवड़ाए हुए (जो कि पहले सर्व सुख सम्पन्न थे) प्राणियोंको सर्व तरह अखासन देकर कर्मभूमिकी रचना यानी पुर, ग्राम, पट्टणादि और लौकिक शास्त्र, लोक व्यवहार, दयामयीधर्म, असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, सेवा, शिल्पादि षट्कौसे आजीवका करना इत्यादि विधिवतलाई इसीलिये इनका नाम आदिब्रह्मविधाता है और कर्मभूमिकी सृष्टि रची इसी लिये सृष्टाभी कहते हैं । फिर इन्होंने इस असार संसारकी असारता जान, इससे ममत्व त्याग, सर्व परिग्रहारम्भसे मोहजाल टाल, केवल ज्ञान प्राप्तकर दिव्यध्वनि द्वारा अनादिकालसे संसारमें खखरुपको भूलकर भटकते हुए प्राणियोंको सच्चे सुखके मार्गका उपदेश देकर जगत्पूज्यपदकी प्राप्ति की । इसही तरह बीचबीचमें हजारों वर्षोंके अंतरसे क्रमसे अन्य २३ तीर्थंकरोंने इस संसाररूपी मरुस्थलमें विषयाशारूपी मरीचिकासे भ्रमते हुए जीवमृगोंको धर्मामृतकी वर्षाकर संतृप्त किया। सबसे अंतमे होनेवाले स्वामी वर्धमान- महावीरने भी इसही तरह संसाररूपी विकट अटवीमें कर्मचोरोंके द्वारा जिनका ज्ञानधन लुट गया ऐसे विचारे इधरउधर भटकते हुए प्राणियोंको तत्वोपदेश देकर सुमार्गमें लगाकर सर्वदाके लिये मोक्ष पदवीमें आसन जमाया। इन चौवीस तीर्थंकरोंके मध्यमें १२ चक्रवर्ती ९ नारायण ९ प्रतिनारायण ९ बलभद्र ११ रुद्र, ९ नारद आदि पदवीधर मनुष्य होते हैं।
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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