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________________ भ ल [ १९३ ] हिमवनपर्वत. म्लेच्छ खंड म्लेच्छ खंड म्लेच्छ संड व hc ५ त 23 R आर्य खंड 12 म्लेच्छ खंड म्लेच्छ खंड क्षेत्र मु ho ण स । यह सत्र कथन प्रमाण योजनसे हैं । एक प्रमाण योजन वर्तमानके २००० कोशके बराबर है इससे पाठक समझ सकते हैं कि, आर्यखंड बहुत लम्बा चौड़ा है । चतुर्थकालकी आदिमें इस आर्यखंडमें उपसागरकी उत्पत्ति होती है । जो क्रमसे चारों तरफको फैलकर आर्यखंडके बहु भागको रोक लेता है। वर्तमान के एशिया योरोप एफ्रिका एमेरिका और आस्ट्रेलिया ये पांचों महाद्वीप इसही आर्यखंडमें हैं । उपसागरने चारों ओर फैलकर ही इनको द्वीपाकार बना दिया है। केवल हिन्दुस्थानकोही आर्यखंड नहीं समझना चाहिये । वर्तमान गंगा सिंधु, महागंगा या महासिंधु नहीं हैं । 1 इस प्रकार जैन सिद्धान्तदर्पणग्रंथमं आकाशद्रव्यनिरूपणनामक छडा अध्याय समाप्त हुआ । १३. जे. सि. द.
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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