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________________ [१८] 1 • रात्रि होती है । सूर्य कर्क संक्रान्तिके दिन अभ्यन्तर वीथी ( भीतरी -गली ) में गमन करता है । उसही दिन दक्षिणायनका प्रारंभ होता है । और मकरसंक्रान्तिके दिन बाह्य वीथीपर गमन करता है । उसही दिन उत्तरायणका प्रारंभ होता है । प्रथम वीथीसे १८४ वीं वीथीमें आनेमें १८३ दिन लगते हैं । तथा उसही प्रकार अन्तिम वीथीसे प्रथम वीथीपर आने में १८३ दिन लगते हैं । दोनों अयनोंके मिलेहुए दिन ३६६ होते हैं । इसहीको सूर्यवर्ष कहते हैं । एक सूर्य ६० मुहूर्तमें मेरुकी प्रदक्षिणा पूरी करता है । अथवा मेरुकी प्रदक्षिणारूप आकाशमय परिधिमें एक लाख नव हजार आठसौ गगनखंडोंकी कल्पना करना चाहिये । इन खंडोंमें गमन करनेवाले ज्योतिषियोंकी गति इस प्रकार है, चंद्रमा एक मुहूर्तमें १७६८ खंडोंमें गमन करता है । सूर्य एक मुहूर्तमें १८३० गगनखंडोंको तय करता है । और नक्षत्र एक मुहूर्तमें १३५ गगनखंडोंको तय करते हैं । चंद्रमाकी गति सबसे मंद है, चंद्रमासे शीघ्रगति सूर्यकी है, सूर्यसे शीघ्रगति ग्रहोंकी है, ग्रहोंसे शीघ्रगति नक्षत्रोंकी है । और नक्षत्रोंसे शीघ्रगति तारोंकी है । इसप्रकार संक्षेपसे ज्योतिषचक्रका कथन किया । इसका सविस्तर कथन त्रैलोक्यसारसे जानना । इस -प्रकार मध्यलोकका संक्षेपसे कथन करके अब आगे ऊर्द्धलोकका -संक्षिप्त निरूपण किया जाता है । ऊर्द्धलोक | मेरुसे ऊर्द्धलोकके अन्ततकके क्षेत्रको ऊर्द्धलोक कहते हैं । इस ऊर्द्धलोकके दो भेद हैं, एक कल्प और दूसरा कल्पातीत । जहां इंद्रादिककी कल्पना होती है, उनको कल्प कहते हैं । और जहां · यह कल्पना नहीं है, उसे कल्पातीत कहते हैं । कल्पमें १६ वर्ग
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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