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________________ [१६५] अधोलोक । नीचेसे लगाकर मेरुकी जड़ पर्यन्त सात राजू ऊंचा अधोलोक है। जिस पृथ्वीपर अस्मदादिक निवास करते हैं, उस पृथ्वीका नाम .चित्रा पृथ्वी है । इसकी मोटाई एक हजार योजन है और यह पृथ्वी मध्यलोकमें गिनी जाती है । सुमेरु पर्वतकी जड़ एक हजार योजन चित्रा पृथ्वीके भीतर है तथा निन्यानवै हजार योजन चित्रा पृथ्वीके ऊपर है और चालीस योजनकी चूलिका है । सब मिलकर एक लाख चालीस योजन ऊंचा मध्यलोक है । मेरुकी जड़के नीचेसे अधोलोकका प्रारंभ है। सबसे प्रथम मेरुपर्वतकी आधारभूत रत्नप्रभा पृथ्वी है । पृथ्वीका पूर्व पश्चिम और उत्तर दक्षिण दिशाओंमें लोकके अन्तपर्यन्त विस्तार है, और इसही प्रकार शेष छह पृथ्वियोंका भी पूर्व पश्चिम और उत्तर दक्षिण दिशाओंमें लोकके अन्तपर्यन्त विस्तार है मोटाईका प्रमाण सबका भिन्न भिन्न है । रत्नप्रभा पृथ्वीकी मोटाई एक लाख ८० हजार योजन है । रत्नप्रभा पृथ्वीके नीचे पृथ्वीको आधारभूत घनोदधि घन और तनुवातवलय हैं । तनुवातवलयके नीचे कुछ दूर तक केवल आकाश है । आगे चलकर शर्कराप्रभा..नामक दूसरी पृथ्वी है, जिसकी मोटाई बत्तीस हजार योजन है। मेरुकी जड़से शर्कराप्रभा पृथ्वीके अन्ततक एक राजू है, जिसमेंसे दोनों पृथिवियोंकी मोटाई दो लाख बारह हजार योजन घटानेसे दोनों पृथिवियोंका अन्तर निकलता है । शर्कराप्रभाके नीचे कुछ दूरतक केवल आकाश है, जिसके आगे अाईस हजार योजन मोटी बालुकाप्रभा तीसरी पृथ्वी है । दूसरी पृथ्वी के अन्तसे तीसरी पृथ्वीके १ इसही प्रकार शेप छह पृधिवियोंके नीचे भी चीस बीस हजार योजन मोटे तीन वातवलय समझना ।
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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