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________________ [१२७] काशके प्रदेश ये छह राशि मिलानेसे जो योग फल हो, उस प्रमाण विरलन, देय, शलाका ये तीन राशि स्थापनकर शलाकात्रय निष्टापन करना । इस प्रकार शलाकात्रयनिष्टापन करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उसमें धर्मद्रव्य और अधर्म-द्रव्यके अगुरुलघुगुणके अनन्तानन्त आविभागप्रतिच्छेद मिलाकर, योगफल प्रमाण विरलन, देय, शलाका स्थापन कर पुनः शलाक़ात्रय निष्टापन करना । इसप्रकार शलाकात्रयनिष्ठापन करनेसे मध्यम अनन्तानन्तका भेदरूप जो महाराशि हुई, उसको केवलज्ञानके अविभागप्रतिच्छेदोंके समूहरूप राशिमेंसे घटाना और जो शेष बचे, उसमें पुनः वही महाराशि मिलानेसे केवलज्ञानके अविभागप्रतिच्छेदोंका प्रमाणस्वरूप उत्कृष्ट अनन्तानन्त होता है । उक्त महाराशिको केवलज्ञानमेंसे घटाकर पुनः मिलानेका अभिप्राय यह है कि, केवलज्ञानके अविभागप्रतिच्छेदोंका प्रमाण उक्त महाराशिसे बहुत बड़ा है । उस महाराशिको किसी दूसरी -राशिसे गुणाकार करनेपर भी केवलज्ञानके प्रमाणसे बहुत कमती रहता है । इसलिये केवलज्ञानके अविभागप्रतिच्छेदोंके प्रमाणका महत्व दिखलानेके लिये उपर्युक्त विधान किया है । इस प्रकार संख्यामानके २१ भेदोंका कथन समाप्त हुआ । अब आगे उपमामानके आठ भेदोंका खरूप लिखते हैं। जो प्रमाण किसी पदार्थकी उपमा देकर कहा जाता है, उसे उपमामान कहते हैं । उपमामानके आठ भेद हैं । १ पल्य (यहां पल्य अर्थात् खासकी उपमा है), २ सागर (यहां लवणसमुद्रकी उपमा है), ३ सूच्यङ्गुल, ४ प्रतरागुल, ५ घनाङ्गुल, ६ जगच्छ्रणी, ७ जगत्प्रतर और ८ लोक । 'पल्यने तीन. भेद हैं;-१ व्यवहारपल्य, २. उद्धारपल्य और ३ अद्धापल्प । व्यवहारपल्यका
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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