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________________ भास्कर [भाग ६ जो पीड़ायें होती हैं उनको विनाश करता है ।* ____ गुरुफल-यह लग्न से चतुर्थ है और चतुर्थ वृहस्पति अन्य पाप ग्रहों के अरिष्टों को दूर करता है तथा उस पुरुष के द्वार पर घोड़ो का हिनहिनाना, वन्दीजनों से स्तुति का होना श्रादि बातें हैं। उसका पराक्रम इतना बढ़ता है कि शत्रु लोग भी उसकी सेवा करते हैं; उसकी फीति सर्वत्र फैल जाती है और उसकी आयु को मी बृहस्पति बढ़ाता है। शूरता, सौजन्य, धीरता प्रादि गुणों को उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। शुक्रफल-यह लग्न से तृतीय और राहु के साथ है। अत एव इसका फल प्रतिष्ठा के ५वें वर्ष में सन्तान-सुख को देना सूचित करता है। साथ ही साथ उसके मुख से सुन्दर याणी निकलती है। उसकी बुद्धि सुन्दर होती है। उसका मुख सुन्दर होता है और वस्त्र मुन्दर होते है। मतलब यह है कि इस प्रकार के शुक्र के होने से उस पूजक के सभी कार्य सुन्दर होते हैं। शनिफल यह लम से नवम है और इसके साथ केतु भी है, परन्तु यह तुलाराशि का है। एमलिये उच्च का शनि हुआ अत एव यह धर्म की वृद्धि करनेवाला और शत्रुओं को वश में करता है। नत्रियों में मान्य होता है और कवित्व शक्ति, धार्मिक कार्यों में रुचि, ज्ञान की वृद्धि गादि शुभ चिह्न धर्मस्थ उच्च शनि के हैं। + 'पुग मूर्तिगो मार्जयेदन्यरिष्ट गरिष्ठा धियो वैखरीवृत्तिभाजः। जना दिव्यचामीकरीभूतदेहाश्चिकित्साविदो दुश्चिकित्स्या भवन्ति ॥" "लग्न स्थिताः जीवेन्दुभागवबुधाः सुखकान्तिढाः स्युः।" : गृहवाल मयत वानिई पा द्विजोचारितो वेदघोपोऽपि तद्वत् । प्रनिर्धित उर्यते पारिचर्य चतुर्थे गुरौ तप्तमन्तर्गतश्च ॥ -चमत्कारचिन्तामणि एजोर रखो लोक रामगो राजपूजितः। विनातारिस कुलाध्यक्षो गुरुभक्तश्च जायते ॥ लमचन्द्रिका म- भगंत मन में चतुर्थ स्थान में गृहस्पति हो ये तो पूजक (प्रतिष्ठाकारक) सुखी, राजा से मान्य, गायों को जीतने वाला, फुलशिरोमणि तथा गुरु का भक्त होता है। विशेप के लिये बृहज्जातक ११ या प्रश्नायगे। : गुभारमा मनोगपि धायी मुस धार धारूणि वासासि तस्य । वाराही संहिता मर जाती धनपान्पएनान्वितः। नीरोगी राजमान्यश्च प्रतापी चापि जायते ॥ लमचन्द्रिका - मोगर FIR में रहने में पूजक धन-धान्य, सन्तान आदि सुखों से युक्त होता है। गी, राग में मान्य भीर प्रतापी होता है। यूहन्नातक में भी इसी श्राशय के कई ग्लोक है निरोगी र निगा गया है।
SR No.010062
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain, Others
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1940
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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