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________________ किरण ४] श्रवणबेल्गोल के शिलालेख साहित्य-कला । श्रवणबेलगोल के अधिकांश शिलालेख कन्नड और संस्कृत-भाषा में हैं। मारवाड़ी हिन्दी मे भी कुछ शिलालेख हैं। साहित्य में कला की दृष्टि से उनमे से कई उल्लेखनीय हैं। 'मल्लिषेणप्रशस्ति' आदि इतिहास और साहित्य दोनों के लिये उपयोगी है। कुछ नमूने देखिये:__ (१)"स्वस्ति समस्त-भुवन-स्तुत्य-नित्य-निरवद्य-विद्या विभव-प्रभाव-प्रहरुहूरीपाल-मौलि. मणि-मयूख-शेखरीभूत-पूत-पद-नख-प्रकररूं। जितवृजिनजिनपतिमतपयपयोधिलीला-सुधा करवं। ..................... ..... . शरदमलशशधरकरनिकरनीहारहाराकारानुवर्तिकीर्तिवल्लीवेल्लितदिगन्तरालरु मप्पश्रीमन्महामण्डलाचार्य्यरु श्रीमद्देवकीर्तिपण्डितदेवरु ।" (लेख नं० ३९) (२) “स्वस्तिनिस्तुपाति-जितवृजिन-भाग-भगवदर्हदहणीयचारुचणारविन्दद्वन्द्वानन्दवन्दनवेलाविलोकनीयाक्ष्मायमाण-लक्ष्मीविलासेयुं । अपहसनीयस्वीयजीवितेशजीवितान्यजीवन, विनोदानारत-रतरतिविलासेयुं । कालेयकालराक्षसरता-विकलसकलवाणिजनाणातिप्रचण्डचामुण्डातिश्रेष्ठराजोष्ठिमानसराजमानराजहंसवनिताकल्पेयुं ।" इत्यादि (लेख नं०४९) यह तो हुआ मनोहर गद्य; किन्तु ज़रा पद्यों को भी देखिये :(१) 'विहितरितभट्टा भिन्नवादीमशृङ्गा वितत-विविधमङ्गाः विश्वविद्याजभृङ्गाः। विजितजगदना वेशदूरोज्ज्वलाङ्गा विशदचरणतुङ्गा विश्रुतास्तेऽस्तसङ्गाः॥३०॥" (लेख नं० १०५) (२) "उद्दीप्त-दुःख-शिखि-सङ्गतिमङ्गयष्टिं तीवाजवाजव-तपातप-ताप-तप्तां। स्रक्-चन्दनादि-विषयामिष-तैल-सिक्तां को वावलम्ब्य भुवि सञ्चरितप्रबुद्धः ॥६६॥ (लेख नं० १०८) श्रवणबेलगोल के शिलालेखों से धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और राजनीति-शास्न आदि के भी उल्लेखनीय नियमों की उपलब्धि होती है। रसिकजन उनका वहां से पाठ करें। सारांशतः म० बाहुबली की विशाल-विभूति का धर्ममय प्रभाव वहां चहुंओर छिटक रहा है। धन्य हैं वे जो उनके दर्शन करके अपना जीवन सफल करते हैं। इति शम्।
SR No.010062
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain, Others
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1940
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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