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________________ ( ७३ ) ४ अप्रत्याख्यानी-क्रोध, मान, माया और लोम धारहमास तक रहे। ४ प्रत्याख्यानी-क्रोध, मान, माया और लोम चार मास तक रहे। ४ संज्वलन-क्रोध, मान, माया और लोभ अधिक से अधिक १५ दिन तक रहे। निज परिणति निर्मल को, को न कमी कपाय । छोड़ो लम्बी वासना, जो दुर्गति लेजाय ॥ पाठ १४ नो कपाय। (१) हास्य-मजाक करना। (२) रनि-पुश होना। (३) अति-नाराज होना। (४)।५-उर लगना। (५) शोक-संयोग वियोग में दिलगीर होना। (६) दुर्गा-अनविकर वस्तु को देखकर प्या-करना। (७) स्त्रीवेद-अप के सभागन (८) पुरप्टेड-वी के सामन रात को देखकर रिसर - र के समाग
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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