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पाठ ३-ग्रादर्श वन्धु । जिस समय महारानी केकयी अपनी इच्छा पूर्ण करने के लिए महाराजा दशरथ से यह कह रही थी कि 'राम को वनवास और भरत को राज्य देने से ही आप प्रतिज्ञा पालक कहे जायेंगे' । उन शब्दों को सुनकर राजा दशरथ मूर्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़ते हैं । इतने में राम वहां आते हैं। पिता श्री को मूर्छित अवस्था में देखकर माता से पूछते हैं" हे माताजी ! क्यों आप भी उदास हैं और पिता जी भूमि पर अचेत पड़े हुए हैं ?
केकयी सिंहनी का रूप धारण किये हुए थी । लाल आँखें कर के बोली-क्या बात है ? बात क्या हो ? यही है कि तुम जैसे महाराज के पुत्र हो क्या वैसे ही भरत नहीं हैं ? जननी अलग २ है तो क्या ? पिता तो एक ही है। ___ राम-हां, माताजी, आप सच कहती हैं। । केकयी-तब तुम्हें राज्य मिले और मेरे पुत्र भरत नहीं! राम-क्यों नहीं माताजी, अवश्य मिलना चाहिये ।
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