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मैत्री, प्रमोद, करुणा, माध्यस्थ और वात्सल्य रूप उसके कवेलू टूटफूट गये हैं और हजारों वर्ष हुए इन परम पवित्र महलों को किसी ने भी मानो सम्हाला ही न हो जिससे उनके आस पास उदासीनता और शोक का वातावरण छा रहा है । प्रभु महावीर के महलों की ऐसी शोचनीय दशां हो गई है इसलिये अब बहिनों को विवेक, सुशिक्षा नम्रता और मधुरता रूप पावडे, कुदाली, दरांतेऔर खुरपियाँ दीजियेगा जिससे बहिनें जड़क्रिया और कुरुढियों का घास तथा बहमरूप कासका निकंदन करके हजारों वर्षों से महलों में जमा हुआ कूडा, कचरे का डूंगर उठाकर साफ स्वच्छ करदे और उसमें अहिंसा, सत्य, प्रेम, और सादगी के सुगंधित धूप रूपी धूएं से पहिले की दुर्गंध का नाश करें । पुरुषवर्ग ! आप गुण ग्राहकता, साम्यता, क्षमा, विनय, सरलता और संतोष आदि गुणरूप ईंट, चूना, सीमेंट तैयार कीजियेगा । . साधु साध्वी ! आप भी संयम के कोट को सम्यक् ज्ञान दर्शन, चारित्रादि से पक्का बांधने के लिये तैयार हो जाय जिससे महल पूर्व जैसा रत्नमय दिव्य ज्योति से झगमगाने लगे, और श्रावक श्राविका रूप नवीन छप्पर ढालकर उन भव्य पवित्र महेलों मे विराजें और प्रभु महावीर संदेशको सुनें और ओरोको भी सुनावें ।
( जैन प्रकाश )