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________________ ( १३० ) भेड वाधके समीप, चूहा बिल्लीके समीप और सर्प मयूरके समीप अभयहो सबको अपने कुटुम्बीसे समझ उनके पास निर्भयता से खेलते और कूदते हैं। हिंसक प्राणियों की दृष्टि में से, वाणी में से और व्यवहार में इस प्रकार अमृत वर्षा होती है तो वीर शासन के साधु, श्रावकों के जीवन के प्रत्येक प्रसंग पर शरीर के कुल अवयवों में से अमृत का कितना स्वच्छ सुंदर चौधारी मूसलाधार वर्षाद होता होगा? वीर के समवसरण के प्रताप से ही क्रूर प्राणी एसे दयालू वन जाते हैं तो वीर की वाणी फरमाने वाले साघु, महापुरुषों तथा उन्हीं वीर भगवान की वानी सुनने वाले पवित्र श्रावकों के जीवन कितने पवित्र होना चाहिये? वीर समवसरण के पशुओं में इतना अद्भुत परिवर्तन होता है तो वीर के पुत्रों में कितना अलौकिक समभाव का उदय होना चाहिये ? वीर समवसरण का ही इतना प्रभाव, तो उस पवित्र आत्मा की दिव्य ध्वनि का कितना प्रभाव होना चाहिये ? और अगर ऐसा प्रभाव न पड़े तो श्रोता और वक्ता को कैसा समझना चाहिये ? __ अहा ! वीर की वीरता, गाय, बकरी, चूहे, मृग और सियालों में आ गई कि जिससे वे सिंह-सिंहनी को अपने कुटुम्बी समझने लगे। वीर की दया, करुणा, माध्यस्थता सिंह, वाघ, रीछ और सर्प में आ गई कि जिससे उनके समीप चूहे, मेंढक जैसे भयभीत प्राणी भी अभय हो रहने लगे।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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