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उसी प्रकार जीव धर्माराधन में दुख मानता और विपयी-पायी पापी प्रवृत्ति में सुख मान रहा है ।
(५७) पशु, पक्षियों को संतान साता नहीं देते हैं तदपि वे उनके लिये मिथ्या मोह रखते हैं उसी प्रकार मानव भी मिथ्या मोह रखता है ।
(५८) सती स्त्री प्राण जाने पर भी पर पुरुष की इच्छा नहीं करती उसी प्रकार ज्ञानी विषय - कपाय में नहीं फंसते. और आत्म रमणता करते हैं । (५९) आत्म घातक सब कृत्य आत्म व्यभिचार हैं । (६०) तेल, बत्ती व वर्तन के योग के दीपक जलता है उसी प्रकार ज्ञान दर्शन व चारित्र के योग से आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट होता है ।
(६१) अंधे के हाथ में दिया होने पर भी उसे कुछ नहीं सुझता उसी प्रकार अज्ञानी को चाहे जितने प्रत्यक्ष व परोक्ष प्रमाण बताये जाय तो भी उस पर कुछ असर नहीं होती ।
(६२) भविष्यति इति भव्य जिसमें सम्यक् ज्ञान, दर्शन व चारित्र उत्पन्न होने की सत्ता है वह भव्य है । और जिस में इनका अभाव है वह अभव्य.
(६३) आंख के विना शरीर निरर्थक उसी प्रकार धर्म बिना मानव जन्म निरर्थक है ।