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( ३२ ) अकर्तव्य काम कभी नहीं करने चाहिये । इनके न करने में ही सुख मिलता है।
सूर्योदय तक सोते रहना, दाँतों को साफ करने में आलस्य करना, भोजन में चरपरे-बहुत खट्टे मीठे व भारी पदार्थ खाना, बार २ खाना, अपना काम स्वयं न करके नौकरों से कराना, विना देखे खाना, अनजाने मनुष्य स्थान व भोजन का उपयोग करना, बोलने में तुच्छता लाना, गर्व करना, अपने गुण व अन्य के दोप बोलना, क्रोध करना, अपने पापों को छिपाना, चुगली, निन्दा, ईया आदि करना, कलंक चढ़ाना, विना विचारे काम करना, अच्छा काम करते डरना, दुःख में घबराना, आत्म घात व परघात करना, राग द्वेष व मोह करना, ज्ञान पढ़ते पढ़ाते आलस्य करना, अपनी शक्ति नहीं लगाना; ये सब बुरे काम हैं, अकर्त्तव्य हैं । इनको छोड़कर अच्छे काम करने चाहिये।
पाठ १८--नामा-बहीखाता। १-व्यापारी को चाहिये कि वह रोज आय व्यय लिख कर बाकी रोकड़ संभाला करे ।
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