________________
(६९) लाखों, करोडों आमृवृक्षों का -गुठलियों को ही नहीं- मालिक बन जाता है। श्री ज्ञाताकथांग सूत्रमे भी एक सेठ की चार पुत्रवधुओं का वर्णन है । सेठजी ने अपनी चारों पुत्रवधुओं को शालि के पांच २ दाने दिये थे । कुछ समय के बाद वापिस मांगने पर मालूम हुआ कि एकने वे दाने फेंक दिये थे; दूसरी ने उन्हें खा लिये थे; तीसरी ने हिफाजत से. रख छोडे थे; और चौथी ने वे पांचों दाने खेत में बो दिये थे जो पांच वर्ष में बढतेर हजारों मन हो गये थे। इसी दृष्टांत के अनुसार यदि मानव भवमें प्राप्त पांचों इंद्रियां आदि साधनों को यदि संयमके काम में लगा दिया जाय तो सुख सेठजी की चौथी पुत्रवधु के शाली के दानों के समान वढजाता है। और विषय विकारमय जीवन में उन्हीं साधनों को लगा देनेसे उनकी तमाम उर्वरा शक्ति सेठजी की दूसरी पुत्रवधु के शालिकणों के समान वहीं नष्ट हो जाती है। जो आत्मआराधना करे उसके लिये मानव जन्म की विशेषता है, अन्यथा वह सर्व जीवयोनियो से निकृष्ट है । शारीरिक रक्षा के सम्बन्ध में पाठक ऊपर पढ़ चुके हैं। अगर मनुष्य शारीरिक रक्षा में ही अपना जीवन यापन करदे तो वह मनुष्याकृति में पशु से भी नीच प्राणी है । अज्ञानदशामे भी पशु-पक्षियों का नैसर्गिक जीवन एक
योगाके समान कष्टसहिष्णु दिखाई देता है लेकिन ज्ञानका । दावा रखने वाले मनुष्य का जीवन विशेष पाप-प्रवृत्त