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________________ (३०) करते हैं और असत्य से प्रेम व उसका विश्वास करते हैं असत्य से धन बढ़ेगा व इज्जत आबरू बढ़ेगी और मालोंमाल हो जावेंगे जहां ऐसी परम मिथ्या श्रद्धा पाठकगणों की हो उन्हें क्या समझाया जावे. असत्य बोलना यह वैश्या का धंदा करके सुखी होने जैसा मिथ्या बकवाद है और सत्य बोलना यह शील पाल करके सद्गति प्राप्त करने के बराबर है। चोर व्यापारी-तीसरा व्रत अदत्तादान है. भारतीय व्यापारियों ने झूट की तरह चोरी का भी आश्रय लिया है समुद्र में नदियें आकर मिलती है उसी तरह मृपावाद रूपी महासागर में अन्य पाप पिशाचन रूपी नदियें आकर मिलती ही हैं युरोप वाले हिन्दुस्थान में जो माल भेजते हैं. उसके लिखे हुए वजन में एक रत्ती, माप में एक इंच, व गिनती में अंश मात्र का भी अंतर नहीं रहता है किसी चीज की जो तपसील लिख भेजेंगे उसी रूप में वह चीज भेजेंगे कपड़े के थान में थोड़ी सी भी गलती मालूम हो जाने पर उसकी गिनती कटपीस में करते हैं परन्तु अपने को जैन, श्रावक, समदृष्टि कहलाने वाले कितनेक व्यौपारी चोरो के सरदार जैसे कार्य करते हुए दृष्टिगोचर ह . जन्म के चोर-सात, पीढी के चोर भी ऐसी चोरी करना अपने बाप दादाओं से नहीं सीखे हैं न चोरों के दादाओं के मगज में भी ऐसी चोरी करने के -- र ख्याल में आये होंगे।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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