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श्रोआत्म-बोध २-मनुष्य तथा तियंच भी गर्भ अवस्था की शुरुआत मे प्रवाही ( पानी ) रूप होते हैं उसी तरह पानी मे भी जीव होता है। ___३-जैसे शीत काल मे मनुष्य के मुख मे से भाफ निकलती है वैसे ही कूए के पानी से भी गर्म भाफ निकलती है
४-जैसे शरदी मे मनुष्य का शरीर गर्म रहता है वैसे ही कूए का पानी भी गर्म रहता है ।
५-गरमी मे जैसे मनुष्य का शरीर शीतल रहता है वैसे ही कूए का जल भी शोतल रहता है ।
६-मनुष्य की प्रकृति मे जैसे शरदी या गरमो रही हुई है वैसे ही पानी मे भी, ऐसी ही प्रकृति है।
७-जैसे गाय का दूध नित्य निकालनेही से स्वच्छ रहता है और नित्य न निकालने से बिगड़ता है वैसे ही कूए का पानी राज निकालने से स्वच्छ और सुन्दर रहता है और न निकालने से बिगड़ जाता है।
८-जैसे मनुष्य शरीर शरदी मे अकड़ जाता है वैसे ही शर्दी मे पानी ठण्डा होकर बर्फ जम जाता है ।
९-जैसे मनुष्य बाल, युवा और वृद्ध अवस्था में रूप बद लता है वैसे ही पानी की भाफ, बरसात और बर्फ के रूप में अव स्था पलटती है।
१०-जैसे मनुष्य देह गर्भ मे रह कर पकता है वैसे ही पानी बादल के गर्भ मे छः मास रहकर पकता है । अपक अवस्था मे कच्चे गर्भ की तरह ओले (गड़े) गिरते हैं ।