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________________ १४ श्री आत्म-बोध का और संप का उपदेश काबरन का, वैसे संप्रदाय, शिष्य और क्षेत्र का मोह छुटे बिना मुनि का उपदेश निस्सार है । २० - मछली की घात पारधी से बड़ी मछलियाँ ज्यादा करती है । वैसे अन्य धर्मी से कलह प्रेमी साधु, और श्रावक जैन धर्म का ज्यादा नाश करते हैं । I २१ - इस भव मे भूतकाल की खेती को लाट रहे हो और वर्तमान मे भविष्य के लिये बीज बो रहे हो । २२- नाटककार राजमुगट पहिनने से राज्य लक्ष्मी का अधिकारी नही हैं। वैसे मुनिपने का नाम धरने वाके कल्याण के भागी नहीं हैं । २३ - ईसाईयों ने भारत मे धर्म प्रचार के लिये --१३७मुक्ति फौज नाम की संस्थाएँ, १८७७६ - पादरी धर्मगुरु, १५०० डॉक्टर्स, ४०० सफाखाने, ४३ छापाखाने, ९९ अखवार, ५० कोलेजे ६१० स्कुले, १७९ उद्योगशालाएँ, ४८०४४ विद्यार्थी ६१ अध्यापक विद्यालय, श्रीमंत जैनियों, आपने आपके धर्म प्रचार के लिए क्या कुछ किया है ? २४ - जैसे हिन्दू और मुसलमीनो ने आपस मे लड़कर स्वराज्य गुमाया वैसे श्वेताम्बर दिगम्बरो ने मूर्ति के लिए, और स्वा० साधुओं ने सम्प्रदाय के लिये आज जैन धर्म को मुड़दल सा बना रखा है । २५ - जैसे कचहरी, कानून, और वकील की स्थापना शाति के लिए ई, आज उतनी ही ज्यादा अशान्ति और क्लेश के फैला रहे हैं वैसे, सम्प्रदाय, कल्ल, मर्यादा, और श्राचार्यादि क्लेश के निमित्त बन रहे हैं। 4
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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