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________________ कहा जा सकता है-"सिंह का सामना एक ढग से ही होगा। वहाँ हमारे माधुपने से काम नहीं चल सकता। पाकिस्तान और चीन जैसे भयानक देशों का सामना बातो मे नही हो सकता और न शान्ति, शान्ति की रट से। उत्तर दीजिये ऐने ठिकाने-अपना वचाव कैसे करे ?" __ प्रश्न विल्कुल यगर्य है। उनकी बुरी मनोवृत्ति को न वढने, और उदय में न आने देने के लिए हमें हर तरह से गक्तिशाली बने रहना अति आवश्यक प्रतीत होता है। बात इतनी ही है कि उन शक्ति को नियत्रित रखते हुए हमें उसका उचित उपयोग मान करना होगा और हमें यह समझना होगा कि हमारा 'आपम में प्रेम' मब अम्लो-शस्ती से हजारो गुना अधिक गक्तिशाली अस्त्र है।. निह, मिह होने पर भी गाव पर जल्दी मे हमला नहीं करता। हमारे आपस के दृढ प्रेम को जब शत्रु समझ लेगा तब वह भूल कर भी हमारी तरफ नही ताकेगा। एक एक धागा जब रस्मी का रुप ग्रहण कर लेता है तो वडे-२ मदमस्त हाथियों को भी वाव देता है। यह ठीक है कि हवा जैनी चलती है विवेक पूर्वक हमे अपने बचाव का रुख भी बदलना पड़ता है। पचास वों में ही समार ने कैसा पलटा खाया है और आगे के मन्त्र-शस्त्र कैने निकम्मे हो गये है, यह सब हमारे सामने है। कुछ ही वर्षों बाद कौन जाने क्या परिवर्तन आयेगा और आज के ये अस्त्र-शस्त्र भी कितने मूल्य वाले रहेंगे, कोई नही कह सकता। कुछ-न-कुछ सभी में कमजोरी होने के कारण, आज जो हमारेमायी है, कल उनका क्या रवैया रहेगा कोई नहीं जानता। इतना तो मोचें कि हमारे जैसे वडे देश को ही यदि अस्त्रो-शस्त्रो के विना खतरा हो जायेगा तो अति छोटे-२ देश ने अफगानिस्तान, लका, इत्यादि की स्थिति कमे नभनी रहेगी, जो चाहने पर भी इतने साधन-सम्पन्न नही बन सकते। यदि वै बचे रह सकते है-(जसे कि अन्य इतने गक्ति सम्पन्न देशो के रहते हुए भी आज तक वचे हुए हैं)-फिर हमारा ही बिगाड क्यो हो जायेगा? कुछ तो हमें अपने ऊपर भरोमा होना चाहिए। अन्तरात्मा यही गवाही देती है कि हमारा अस्वोगस्त्रो मे लग होने का रास्ता सही नहीं है। सही यही है कि सभी भाइयो से अपने मन मुटाव को दूर करके समझदारी से जितनी जल्दी हो सके किसी भी कीमत पर भेद-भाव दूर करते हुए, अन्त करण का शुद्ध प्रेम बढा ले। आज हमे यह १३५
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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