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________________ करते । अन्याय तो विपयो के मारे भरे पेट वाले ही दिन-दहाड़े करते है । विपयो और कषायों के सम्बन्ध में, शास्त्रकारो ने भिन्न- २ रूप से महान् विवेचन किया है, जिनका विस्तार पूर्वक ज्ञान उनके लिखे ग्रन्यो से प्राप्त कर सकते है । सही चिन्तन ( सम्यक् ज्ञान ) यदि हमारा मन यह मानता हो कि प्रेम पूर्वक रहने से हम सब का परम मंगल है, फिर कठिनाई किस बात की है । जिसको प्राप्त करने मे गाठ की एक कौडी और क्षण मात्र समय की भी आवश्यकता न हो, ऐमी सफलता की कुजी को ग्रहण न करे तो हम कैसे चतुर और वुद्धिमान मनुष्य है, यह हमे सोचना चाहिए । यदि कोई ज्ञान के सम्पर्क में न आने के कारण भूल करे तो हो सकता है उसे अधिक दोप न दें पर उस 'भूल' के लिए समाज को तो सजा मिल ही जाती है । इसलिए हर हानि से बचने के लिए प्रत्येक का ज्ञानवान होना बहुत जरूरी है । आज भी हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं कि हमारी बहुत वडी हानि इसी ज्ञान के अभाव में हो रही है। हम किसी भी नारा लगानेवाले के पीछे नारा लगाने लगते है अत. ज्ञान प्राप्त करना हमारा प्रथम कर्त्तव्य है । कठिनाई यदि इतनी ही होती तो हमारी समस्या कभी हल हो गई होती । ज्ञान की प्राप्ति हमें हो सकती है और हम कर भी लेते है । जैसे वैद्य मना करता है कि अमुक वस्तु मत खाना। रोगी को भी पूर्ण ज्ञान हो गया है कि अमुक वस्तु खाना ठीक नही है, फिर भी वह खा ही लेता है । एक नही हममे से अनेक इसी प्रकार की गलती करते है । इसका क्या कारण ? अन्ततोगत्वा यही मानना पडता है कि मन वश में नही रहा । हम मन पर नियंत्रण नही रख सके । आधुनिक उन्नतिशील लोगो को भौतिक उन्नति और उनके साहित्य को देखकर, यह कहा जा सकता है कि उनमें प्रचुर मात्रा में ज्ञान है । पर उनकी स्थिति अति भयानक है । अवसर आने पर वे एक दूसरे को समूल नष्ट कर सकते हैं । इस विनाशकारी वृत्ति का कारण कम-से-कम उनकी अज्ञानता या उनके पेट का प्रश्न तो नही है । थोडी देर के लिए मान लें - " इसका कारण उनमें 'ज्ञान की कमी' ही है । उनमें वास्तविक आत्म-ज्ञान नही है । विषयो का उन्हें भान नही है । ससार की क्षणभंगुरता का बोध नही है । परभव का डर नही है ।" हो सकता है यह सत्य हो । १२६
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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