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________________ फिर इन त्यागी, तपस्वी, ज्ञानवान महापुरुपो के और हम जैसे अल्प ज्ञानियो के कार्य में समानता कैसे हो सकती है ? कहाँ उनकी सामर्थ्य, कहाँ हमारी सामर्थ्य । पर पाठक वृन्द, निर्णय के समय आप इतना ध्यान जरूर रखें कि करोडपति के पांच सौ रुपये से, रोज कमाकर पेट भरने वाले गरीब की एक पाई भी अधिक मूल्यवान होती है । पर हम लाचार उन्होने अपने उद्देश्यानुसार अपना तरीका अपनाया और हमने अपने उद्देश्यानुमार अपना तरीका । मुनिराज ने उपदेश देकर हिंसक का हृदय परिवर्तित किया, मन से हिंसा छुडवाई और कुमार्ग से उसे सुमार्ग पर ले आये पर हम यह सब नही कर सके कारण हम तो कमजोर हैं ही, हमारा पात्र भी अति कमजोर है | हम भी बच्चे को उपदेश द्वारा ही उस पाप से बचाते। हम भी जानते है कि काम समझ और प्रेम से ही निकालना चाहिए । सुधार का यही सही मार्ग है । हम थोडे ही चाहते थे कि वालक के साथ कठोरता से काम ले या वह हिंसा का स्वरूप न समझे या ज्ञान सहित समझ कर हिंसा न छोडे । स्थिति में थे । चाहने पर भी यह अवलम्वन नही ले सके । एक तो अबोध बालक उपदेश को समझते नही और शायद कुछ समझते हो और समझाये भी जाँय तो भी उद्दडता या चचलता के वशीभूत शीघ्र मानते नही । इतना समय हाथ में कहाँ था कि कुछ और सोचा जाय । समय रहता तो शायद खिलौने इत्यादि अन्य प्रलोभन की वस्तुएँ सीप, उसको प्रसन्न कर, उसका ध्यान मारने से हटाते हुए अपने उद्देश्यानुसार चीटियाँ और उसको बचा लेते या समय और साधन उपलब्ध होते तो बिना उसके खेल में अतराय दिये यानी स्वामीजी द्वारा कथित बिना उस पाप - पत्थर को छुए, चीटियो को ही हटा देते जैसे शिप्य अपने गुरु के पाट पर विराजने के लिए, श्रौघे से पूज कर धूल हटाया करते है । पत्थर न छीन कर, बालक का हाथ पकड अलग लेते हुए चीटियो को बचाने की वात भी कह सकते हैं पर इस तरह कहने से तो हमारे हाथ, पत्थर की जगह वालक ही आ जाता और तव स्वामी श्री भीखणजी और उनके अनुयायियो को चुटकी लेते हुए एव उत्तर देने की अपनी विचक्षणता पर मोद मानते हुए, वचाने वालो के हाथो पत्थर पकडाने मे जो मनोरजन हुआ वह नष्ट हो जाता । बालक पाप से बचा यह बुरा नही । बालक को पाप से बचाने का प्रयत्न भी बुरा नही । स्वामीजी के विचारानुसार बचाना चाहिए था ज्ञान से समझा ७७
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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