SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रुपये का भी । कौन-सा लाभ लेना चाहेगे ? निश्चय, अधिक लाभ को । लाभ दोनो जगह होते हुए भी 'लाभ', 'लाभ' में अन्तर है या नही ? गुणो की अनुमोदना एक तो घर पर करते हैं, जहाँ गृहस्य के हजार घधे रहते हैं । बच्चे रोते हैं । कोई कुछ वकता है, कोई कुछ । ऐसे वातावरण मे हमारा मन पूरी तरह जम नही पाता यहाँ हमारा ध्यान इवर-उधर वॅटता रहता है इसलिए गुणो मे पूरी तल्लीनता उत्पन्न नही हो पाती । इधर हम मुनिराज के ठिकाने अनुमोदना करते हैं और वह भी महान तपस्वी और ध्यानस्थ मुनिराज के ससर्ग मे । वहाँ आने-न नेवालो का भी हमारी तरह एक ही काम - " भाव से नमस्कार" । यह भी मन को एक बड़ा भारी सहयोग | अपार शान्तिमय स्थान, प्रत्यक्ष गुणो के अवतार सामने होने से मन की एकाग्रता का क्या कहना ? उत्तम भावो में जो तीव्रता आती है उसका वर्णन नही किया जा सकता । वह तो हमारा मन ही समझ सकता है । ऐसी तीव्र भावना, ऐसा उल्लास, ऐसी मन की एकाग्रता लाख प्रयत्न करने पर भी, घर पर उत्पन्न होनी बडी टुप्कर है। अनुभव से ही तू अपने अतर में इस अंतर को समझ 1 "यदि लाभ में इतना अन्तर नही होता तो यहाँ तक आने का कौन कष्ट करता ? कौन अपने आने-जाने के समय को नष्ट करता ? फिर जिस 'हिंसा' का तू अफसोस कर रहा है उसे कौन अगीकार करता " पाठक वृन्द ! हम भी आपकी साक्षी मे अपने प्रश्नकर्त्ताओं को संतोषजनक उत्तर देने का प्रयास करेगे परन्तु आपके प्रश्नकर्त्ता की तरह हमारे प्रश्नकर्तागण साधारण व्यक्ति नही हैं । उनके हिसाब से, छद्मस्थ रूप में भगवान, चार ज्ञान के स्वामी भले ही चूक जाँय पर ये पन्य-मोह-मस्त शून्य के स्वामी मूर्ति पूजा की नस-२ ढीली करने में कभी नही चूक सकते । अपने गुरुओ के गुरु, ये वीर वच निकलने मे उस चतुर सेठ से कम नही जो चदा न देने की अपनी इच्छा को जानते हुए भी, आमने सामने अपने मुख से 'नहीं' न कहने के अभिमान में, सग्रहकर्ताओ से किसी दूसरे ऐसे सेठ से चंदा ले आने का आग्रह इसलिए करता है कि उसको यह पूरा भरोसा है कि वह चंदा कभी नही देगा । जव वह चदा नही देगा तो स्वत. ही उसे भी चंदा नही देना पड़ेगा और "नहीं" कहने से जो उसकी हेठी होती, या दूसरे लोग, चंदा न देने के लिए उसको 'बहाना' बनाते या संग्रह कर्तात्रो से माथा-पच्ची करनी पडती अथवा उन चतुर व्यक्तियो के वाक् जाल में ૪
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy