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________________ मेरे लिए कही श्रेष्ठ है। यहाँ कम से कम मुझे शान्तिप्रद स्थान तो मिलेगा। कई सासारिक प्राणियो को परम पिता परमात्मा की भक्ति करते हुए तो अनुभव करूंगा।" पाठक-वृन्द सोचे कि क्या हमें हिंसक समझने वालो के मनो में फूल के प्रति दया या करुणा का भाव है ? जब कि वे नित्य ही उनका अपने व्यवहारो में प्रसन्नता पूर्वक उपयोग करते है। हम बकरा न तो मारते है और न किसी के द्वारा मारे जाने के बाद उसके किसी अश को खाते है इसलिए बकरा मारनेवाले को बुरा कह भी सकते हैं पर वे हमे फूल के प्रयोग के लिए कैसे बुरा कहते है, जव कि वे खुद उसका उपयोग करते नही थकते। यदि आप कहें कि आज से वे, फूलो, या उनसे बनाये गये द्रव्यो के उपयोग को बिलकुल छोड देगे तो वे क्या-२ छोड़ देंगे? जल, तरकारी, रोटी आदि भी छोड देगे? यदि नही, तो उन्हें समझ लेना चाहिए कि जब तक वे इस ससार को नही छोड देगे हम उनका पीछा छोडने वाले नहीं है, क्योकि हमे मालूम है कि वे अपनी देह को कैसे खडी रख रहे है। __गर्म पानी आया कहाँ सेः--यही हाल पानी के प्रयोग का है। तपस्या और त्याग को तो सभी धर्म का कार्य मानते हैं। कच्चे पानी के पीने का जो त्याग करते है, उस त्याग को भी परखना आवश्यक है। कच्चा पानी जो पूजा के काम मे लिया जाता है, हिंसा की ही दृष्टि से बुरा माना गया है। पर आप आश्चर्य करेंगे कि जीव हिंसा तो कच्चे पानी की अपेक्षा गर्म पानी मे अधिक होती है। पानी को गर्म करने में तो त्रस-काय तक के जीवो के मरने की सम्भावना रहती है। त्रसकाय न भी मरे पर अग्नि-काय, वायु-काय आदि के जीव तो निश्चित रूप से अधिक काम में आये दीखते ही है। फिर भी उसे व्रत माने, धर्म माने, अधिक हिंसा अपना कर ! यह क्यो? ___ कई लोगो का कहना है कि एक बार अधिक जीव मरेगे किन्तु बाद मे उस पानी में, 'समय-२ पर उत्पन्न होने और मरने वाली क्रिया' रुकने से अनेक जीव जन्म-मरण से बच जायेगे। ऐसा समझना सरासर भूल है। जीवो को मार कर जीवो की उत्पत्ति रोकना ही यदि दया मान लिया जायेगा तव तो जैन धर्म का सिद्धान्त ही बदल जायेगा। फिर तो समय-२ पर घर में जो अनेक मक्खी, मच्छर इत्यादि उत्पन्न होते है उन सब को मार दे और बाद मेन अधिक ३४
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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