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________________ बेचारी या बेचारा मर गया। रंधे हुए चावलों के लिए जरा भी दया नही आती । 'पीसी हुई चटनी पर कोई ख्याल नही दोडाता । जो हालत हमारी है वही हालत हमारे मुनिराजो की भी है। भोजन में किसी त्रस जीव के मरे हुए मिलने पर उनके हृदयमें भी अत्यधिक करुणा पैदा होती है । उसे वे भी अलग रख देते है । स्थावर tata लिए ऐसी ही करुणा पैदा हो तो आहार करना तो दूर, आहार लेने 'को भी नही निकलेंगे । } तिब्बत के धर्म गुरु मान्यवर दलाईलामा से पूछा गया कि आप अहिंसा धर्मी होकर ' जीव का पकाया हुआ मास, उवाले अंडे इत्यादि कैसे खा लेते हैं ? उन्होंने उत्तर दिया- "मैं न तो जीवोको मारता हूँ, न पकाता हूँ । भक्तजन दे देते हैं, खा लेता हूँ।” हमारी अन्तरात्माको शायद ऐसे उत्तर से संतोष नही होगा । प्रत्येक विज्ञजन इस सम्बन्ध में गहराई से विचार करें एवं अपनी अन्तरात्मा से इसका स्पष्टीकरण -करें कि कमी कहाँ पर है | अस्तु ऐसे मुनिराजो का वह कथन जो स्थावर जीवो को खाते हुए, उन्ही पर दया रखने का उपदेश दिया करते हैं, कैसे शोभनीय हो सकता है ? ऐसे पदार्थों का उपयोग यदि हिंसा पूर्ण है तो अहिंसा की बात करना ही व्यर्थ है । फिर किसी श्रावक का घर किसी कसाई खाने या बूचडखाने से कम नही कहा जा सकता; और पूर्ण अहिंसक प्राणी तो सिर्फ मोक्ष में ही मिल सकते हैं । पर इस धरती पर विचरनेवाले मुनिराजो को हम पूर्ण अहिंसक, बीस बिसवा अहिंसक कहते हैं । तव पूर्ण अहिसक कहे जाने वाले इन मुनिराजो के व्यवहारो को हम देखें और जैन धर्म के सारगर्भित निर्णय को समझे । जीवों के साथ मुनि का व्यवहार :-मन, वचन -न करने की प्रतिज्ञा करने वाले मुनिराजो को और काया से हिंसा दिन चर्य्या देखना → " यहाँ अपेक्षित है । क्या हम उन्हें पूछ सकते है कि उनके सिर या कपडे बेचारी को अपने निवास स्थान से तो कपडे में जकडकर उसको देना अपने हाथो से उसे मृत्यु के मुख में भेजना नही है ? पैर पर बाँध कर रखना क्या उसे सताना नही है ? क्या यह अत्रत का पोषण नही है ? क्या यह कार्य उनकी बिना इच्छा के हो रहा है ? अपने पीने के जल में पडी हुई मक्खी को वे इसलिए निकाल कर बाहर 1 उत्पन्न हुई जू का वे क्या हाल करते हैं ? हटा कर जमीन पर रख देते हैं या बहुत हुआ "पैर पर बाँध लेते है । क्या जमीन पर रख १२
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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