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________________ हैं, उनकी मूर्तिद्वारा उनके गुणो का स्वल्प आभास भी हमें मिले तो क्या बुरा है ? भगवान की सौम्य मूर्ति का अवलोकन कर हमें उनकी शान्त एवं वैराग्यमय वृत्ति, उनकी प्रकाण्ड तपस्या, उनकी महान् क्षमा प्रगाढ रूप से स्मरण हो आती है। थोडी देर के लिए सारे झझटो को भूल कर उनके अनन्त गुणो में हम लीन हो जाते हैं और उन्ही गुणो को आत्मा में जगाने में बडी प्रेरणा मिलती है। मूर्ति का यह प्रभाव क्या कम है ? इससे अधिक और हम मूर्ति से क्या चाहते हैं ? उपयोगिता :-मूर्ति हमें परम लक्ष्य की प्राप्ति में बहुत सहायता पहुंचा सकती है यदि हम उसकी वास्तविक उपयोगिता को समझ कर उसे काम में लें। उपयोगिता न समझना ही इस तरह की शका का मूल कारण है। द्रव्यों का प्रयोग सरासर-हिंसा' शका का एक बहुत बडा कारण जो हमारे अनेक भाइयो के मनो में, घर कर गया है और जिसके कारण वे मूर्ति से अत्यधिक घृणा करते है, वह है"पूजा में द्रव्यो का प्रयोग।" ऐसे प्रयोगो को वे हिंसा युक्त, निरर्थक और वालको की गुडियो का खेल समझते हैं। शका करने वालो को शका हो सकती है। यदि हमारी विचारधारा ठीकहै तो हमें उसका कारण सहित उत्तर देना चाहिए जिससे उनको पूर्ण सतोष हो और बुरा मानने की जगह उन्हें अपनी भूल महसूस हो। पूजन का ध्येय :-प्रत्येक कार्य के पीछे एक ध्येय रहता है। मूर्ति स्थापित करने में भी एक ध्येय है, और वह है-"चचल मन को; जो स्वभाव ही से विषयासक्त और कामी है, शुद्ध गुणो की ओर प्रेरित किया जा सके।" चंचल - मन की गति किसी से छिपी नही है । इसलिए महापुरुषो ने साधारण व्यक्तियों - के लिए कुछ ऐसे अवलम्बनो की विशेष आवश्यकता समझी, जिनके सहारे इस चचल मन* को यत् किंचित् सुधार कर सन्मार्ग की ओर प्रवृत्त किया जा सके। मूर्ति-पूजा के व्यवहार से चचल मन को कुछ २ परमात्मा के शुद्ध गुणों में * जैसे-महाराज आनन्दघनजी भगवान कुथुनाथ स्वामी की स्तुति में फरमाते है- : बीजी वाते समरथ छै नर, ऐहने कोई न झेले" हो कुंथुजिन, मनड़, किम ही न वाजे
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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