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के कारण त्रुटियां अयवा कमियां अवश्य रही हैं पर जहाँ तक मेरे हृदय को भावना का प्रश्न है, भिन्न प्रकार की मान्यता रखने वालों या अन्य किसी भी भाई को नीचा दिखलाने अथवा जी दुखाने के लिए मैंने यह प्रयत्न नहीं किया है। केवल तय्यातथ्य का विचार कर गुणानुरागी बनने के लिए विनती करना ही मेरा मुख्य ध्येय रहा है।
पडित देवचन्द्रजी, परम योगीराज आनन्दवनजी, उपाध्याय यशोविजयजी प्रभृति महान् तत्त्ववेत्ताओ को, जो इस पुस्तिका के आधार स्तम्भ हैं, भाव पूर्वक वन्दन करता हुआ मै मभी धर्मानुरागी बन्धुओ से आदर सहित विनय करुगा कि थोडा समय निकाल वे इसे पढने की अवश्य कृपा करें।
पुस्तिका की भाषा-शुद्धि, लालित्य-वृद्धि एव स्थल २ पर व्यर्थ के कलेवर एवं कटुता में कटौती लाने में मेरे माननीय भूपराजजी जैन एम० ए० ने जो प्रशंसनीय सहयोग दिया है उसके लिए मैं उनका अत्यन्त आभारी हूँ।
विज्ञ जनो से विनम्र विनती है कि वे इसमें सुधार की अवश्य राय दें। उनका सुझाव सहृदयता पूर्वक स्वीकार किया जायेगा।
मूर्ति का उपयोग यदि आपको रुचिकर लगा और उसकी महत्ता में आपको धारणा अधिक दृढ़ बनी तो मै अपने इस लघु प्रयास को अवश्य सार्थक समझूगा।
अन्त में,-किमी भाई को किसी कारण, मेरे इस प्रयत्न से ठेस लगी हो या कमी खटकी हो तो मै मन, वचन, काया से क्षमा याचना करता हुआ, आशा करता है कि स्नेह पूर्वक वे मुझे क्षमा कर देंगे।
--लेखक
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