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________________ · पा लेता है । पद-चिह्न बटोही को गांव नहीं पहुँचा रहे हैं। गाँव तो वह 'तभी पहुँचेगा जब वह खुद चलेगा, पर पद चिह्नों का सहारा भी कम सहारा नही कहा जा सकता। इसलिए हमे भी यह बराबर ध्यान में रखना चाहिए कि हमारे लिए जो कुछ होगा वह हमारे करने ही से होगा । हम अपने लिए क्यो किसी को कष्ट दे ? क्यो दीन बने ? विनय तो हम सबका करेंगे पर किसी गरज से नही । यह हमारा अभिमान नही है । कार्य क्षेत्र में कार्यरत होने की सच्ची प्रेरणा है । सच्चा आत्म गौरव है । आखिर देव - देवियो का हमारे से प्रसन्न होने या नाराज : ने का कारण ही क्या है ? वे तो हमसे कुछ भी लेते हुए नही दीखते । भोग भी जो कुछ उनके नाम से लगाते है आखिर पाते तो हम या हमारे पुजारी ही है। उन्हें हमसे क्या प्राप्त हुआ ? क्या वे हमारी चापलूसी पसन्द करते है ? धनवान पड़ोसी के लिए भी हम कभी काम आ ही जाते है, चाहे कम-से-कम उनकी हा मे - हा मिलाने का हो मौका मिले, पर देव - देवियो के तो किसी भी कार्य को करते हुए हम नजर ही नही आते । देखा-देखी जैन परपरा मे भी अधिष्ठायको की पूजा - भक्ति इसी प्रकार की गलत धारणा से होने लगी है। यह वहुत ही दुःख का विषय है । शुद्ध परंपरा में यह एक धब्बा है । हम देवी-देवताओं की योनि मान सकते है । उन्हे याद करके बहुमान पूर्वक आह्वान भी कर सकते है, सिर्फ इसी भाव से कि हे महाभाग । यदि आप कही विराजते हो तो जिनराज भगवान के शुद्ध गुणो के बहुमान करने की मंगलमय कृति मे सम्मिलित होने के लिए, जिस किसी भी रूप में सभव हो, आप अवश्य पधारे और हमारे साथ-२ अपनी आत्मा मे ऐसे शुद्ध गुण अपनाने का लाभ लें । इसके अतिरिक्त हम आपसे कुछ नही चाहते। उनके प्रति ऐसा विनय भाव रखना ही हमारे लिए पर्याप्त है । इस विनय से वे इतने प्रसन्न होगे कि यदि वे हमारे लिए कुछ कर सकते हैं तो सब कुछ करेगे । मोत-मार्ग को अपने पद चिह्नों से सुशोभित करते हुए और उस मार्ग को तय करने के तरीको को समझा कर हमारे लिए उसे सरल बनाने वाले महान् उपकारी जिनराज भगवान का; या अपने बुद्धि बल से, तप बल से इस चिह्नित मार्ग की रक्षा करने वाले हमारे प्रवीण प्रहरी महान् आचार्य या मुनि महाराज का; १६६
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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