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________________ ७२८ जैनसम्प्रदायशिक्षा। करना हो उस समय उन छवों गोलियों में से किसी एक गोली को आँख मीच कर उठा लेना चाहिये, यदि बुद्धि में विचारा हुआ तथा गोली का रंग एक मिल जावे तो जान लेना चाहिये कि-तत्त्व मिलने लगा है। २-अथवा-किसी दूसरे पुरुष से कहना चाहिये कि तुम किसी रंग का विचार करो, जब वह पुरुष अपने मन में किसी रंग का विचार कर ले उस समय अपने नाक के खर में तत्त्व को देखना चाहिये तथा अपने तत्त्व को विचार कर उस पुरुष के विचारे हुए रंग को बतलाना चाहिये कि-तुमने अमुक फलाने ) रंग का विचार किया था, यदि उस पुरुष का विचारा हुआ रंग ठीक मिल जावे तो जान लेना चाहिये कि-तत्त्व ठीक मिलता है। ३-अथवा-काच अर्थात् दर्पण को अपने ओष्ठों (होठों ) के पास लगा कर उस के ऊपर बलपूर्वक नाक का श्वास छोड़ना चाहिये, ऐसा करने से उस दर्पण पर जैसे आकार का चिह्न हो जावे उसी आकार को पहिले लिखे हुए तत्त्वों के आकार से मिलाना चाहिये, जिस तत्त्व के आकार से वह आकार मिल जावे उस समय वही तत्त्व समशना चाहिये। ४-अथवा-दोनों अठों से दोनों कानों को, दोनों तर्जनी अङ्गुलियों से दोनों आँखों को और दोनों मध्यमा अङ्गलियों से नासिका के दोनों छिद्रों को बन्द कर ले और दोनों अनामिका तथा दोनों कनिष्ठिका अङ्गुलियों से (चारों अङ्गुलियों से ) ओठों को ऊपर नीचे से खूब दाब ले, यह कार्य करके एकाग्र चित्त से गुरु की बताई हुई रीति से मन को झुकुटी में ले जावे, उस जगह जैसा और जिस रंग का बिन्दु मालूम पड़े वही तत्त्व जानना चाहिये। ५-ऊपर कही हुई रीतियों से मनुष्य को कुछ दिन तक तत्त्वों का साधन करना चाहिये, क्योंकि कुछ दिन के अभ्यास से मनुष्य को तत्त्वों का ज्ञान होने लगता है और तत्त्वों का ज्ञान होने से वह पुरुष कार्याकार्य और शुभाशुभ आदि होने वाले कार्यों को शीघ्र ही जान सकता है । स्वरों में उदित हुए तत्त्वों के द्वारा वर्षफल जानने की रीति ॥ अभी कह चुके हैं कि-पाँचों तत्त्वों का ज्ञान हो जाने से मनुष्य होने वाले शुभाशुम आदि सब कार्यों को जान सकता है, इसी नियम के अनुसार वह उक्त पाँचों तत्त्वों . के द्वारा वर्ष में होने वाले शुभाशुभ फल को भी जान सकता है, उस के जानने की निम्नलिखित रीतियाँ है: १-जिस समय मेष की संक्रान्ति लगे उस समय श्वास को ठहरा कर खर में चलने वाले तत्त्व को देखना चाहिये, यदि चन्द्र खर में पृथिवी तत्त्व चलता हो तो जान
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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