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________________ ७१६ चैनसम्प्रदायशिक्षा || पत्री का फल कभी ठीक नहीं मिल सकता है, इस लिये जब इस विषय का संशेर के वर्णन किया जाता है: घण्टा बनाने की विधि - एक घटी ( घड़ी ) के २१ निनट होते हैं. इस लिये ढाई दण्ड (घड़ी ) का एक घण्टा ( अर्थात् ६० मिनट ) होता है, इस रीति से नही रात्र ( रात दिन ) साठ घटी का अर्थात् चौबीस घण्टे का होता है, नत्र घण्टा बाहे बनाने के समय इस बात का ख्याल रखना चाहिये कि जितनी घटी औौर हो को २॥ से भाग देना चाहिये, क्योंकि इस से घण्टा; मिनट तथा तेनिण्ड तक मान हो सकते हैं. जैसे- देखो ! १४ घटी, २० पल तथा १५ विपल ने घण्टे बनाने है तो पाँच ढाम साढ़े बारह को निकाला तो शेष ( चाकी) रहौं - ११५०११५, न एक घटी के २४ मिनट हुए तथा ५० पल के - २० दाम ५० अर्थात् २० मिनट हुए, इनमें पूर्व के २४ मिनट निलाये तो 88 मिनट हुए तथा १५ विपल के - १८ बन १५ अर्यात् १८ सेकिण्ड हुए, इस लिये -१४ घटी २० पल तथा १५ विपल ने पूरे ५ बडे, १४ मिनट तथा १८ सेनिण्ड हुए || दूसरी विधि -- घटी पल तथा विपल को द्विगुण ( चूना ) करने ६० से चन्न कर ५ का भाग दो, जो लब्घ आवे उसे घण्टा समझो, शेष को ६० से गुणा कर के तथा पल के अह्नों को जोड़ कर ५ का भाग दो, जो लब्ध नावे उसे निनट स मौर शेष को साठ (६० ) से गुणा कर के तथा विपल के नहीं को तोड़ कर ५ का भाग दो, जो लब्ध आवे उसे सेकिण्ड सनझो, उदाहरण - १४/२०११५ को हिगुण ( दूना ) किया तो २८/४०/९० हुए, इन में ते व्यन्तिम १० नं ६० का का दिया तो लव्ध एक माया, इस एक को पल में तोड़ा तो २८/१११३० हुए, इन ५ का भाग दिया तो लब्ध ५ नाया, ये ही पाँच घन्टे हुए, शेष ३ को ६० से गु करके उन में ११ जोड़े तो २२१ हुए, इन से ५ का भाग दिया तो 88 हुए, इन्हीं को मिनट समझो, शेष एक को ६० से गुणा करके उन में ३० बोड़े तो ९० १- लरण रहे कि सवाचे का निशान इस प्रकार से लिखा जायेगा - १११५, हाई का विशाल श पौने दो का ११४५। पूरी राशि ६० है, इसी का नंग ११३ वा हिल्ला १५३०१४५ जना कहिये २- दण्ड, नाड़ी और कटा आदि संज्ञाये ष्टी (घड़ी) को हो हैं और पट, विष्टले पनि त्यादि विपल ही को संज्ञायें है । ३-१४।२०१४५ बाकी १२२।३० अब १० मे ते ३० नहीं घट सकता है, इस लिये बचो हुई दो पक्षों ने से एक टिका को लेकर उस के पल बनाये तो ६० पद हुए, इन को २० ने जोड़ा दो ८० पत्र हुए, इ से ३० को घटावा हो ५० वर्षे, इस लिये ११५०/४५ हुए, इसी प्रकार यह न कह 11
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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