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________________ २५० नैनसम्प्रदायशिक्षा || ५- अवस्था -- शरीर को रोग के योग्य बनानेवाले कारणों में से एक कारण अबस्था भी है, देखो ! बचपन में शरीर की गर्मी के कम होने से ठंढ जल्दी असर कर जाती है, उस की योग्य सम्भाल न रखने से थोड़ीसी ही देर में हाफनी, दम, खांसी और कफ आदि के अनेक रोग हो जाते हैं । जवानी ( युवावस्था) में रोगों को रोकनेवाली शातावेदनी शक्ति की प्रबलता के होने से शरीर को रोग के योग्य बनानेवाले कारणों का ज़ोर थोड़ा ही रहता है । तीसरी वृद्धावस्था में शरीर फिर निर्बल पड़ जाता है और यह निर्बलता वृद्ध मनुष्य के शरीर को बार २ रोग के योग्य बनाती है ॥ ६- जाति -- विचार कर देखा जावे तो पुरुषजाति की अपेक्षा स्त्रीजाति का शरीर रोग के असर के योग्य अधिक होता है, क्योंकि स्त्रीजाति में कुछ न कुछ अज्ञान, विचार से हीनता और हठ अवश्य होता है, इस लिये वह आहार बिहार में हानि लाभ का कुछ भी विचार नहीं रखती है, दूसरे उस के शरीर के बन्धेज नाजुक होने से गर्म प्यारे सुजनो ! विवाह के विषय में शास्त्रानुसार इन बातों का विचार अवश्यमेव करना चाहिये, क्योंकि इन बातों का विचार न करने से जन्मभरतक दुःख भोगना पडता है तथा गृहस्थाश्रम दुःखों की खानि हो जाता है, देखो ! उत्तम कुल वृक्षके तुल्य है, उस की सम्पत्ति शाखाओं के सदृश है तथा पुत्र मूलबत है, जैसे मूलके नष्ट होने से वृक्ष कभी कायम नहीं रह सकता है, उसी प्रकार अयोग्य विवाह के द्वारा पुत्रके अष्ट होने से कुल का नाश हो जाता है, इसलिये जो पुरुष अपने पुत्र और पुत्रियों को सदा सुखी रखना चाहें वे सुखरूपी तत्व का विचार कर जानानुसार उचित विधि से विवाद करें क्योंकि जो ऐसा करेंगे वे ही लोग कुलरूपी वृक्ष की वृद्धिरूपी फल फूल और पत्तो को देख सकते हैं, बल्कि सत्य पूछो तो सन्तान ही नहीं किन्तु उस का योग्य विवाह ही कुलरूपी वृक्ष का इस लिये जैसे वृक्ष की रक्षा के लिये उसके मूल की रक्षा करनी पडती है उसी प्रकार कुल की रक्षा के लिये योग्य विवाह की सभाल और रक्षा करनी चाहिये, जैसे जिस वृक्ष का मूल दृढ होगा तो वह बडे २ प्रचण्ड वायु के मूल है, पट्टों से भी कभी नहीं गिर सकेगा परन्तु यदि मूल ही निर्वल हुआ तो हवा के थोडे ही झटके से उस कर गिर पड़ेगा इसी प्रकार जो पुत्र सपूत वा सुलक्षण होगा तथा उसका योग्य विवाह होगा तो धन तथा कुल की प्रतिदिन उन्नति होगी, सर्व प्रकार से बाप दादे का नाम तथा यश फैलेगा और नाना भाति से सुख तथा आनन्द की वृद्धि होगी, क्योंकि गुणवान् और उत्तम आचरणवाले एक ही सुपुत्र से सम्पूर्ण कुल इस प्रकार शोभित और प्रख्यात हो जाता है जैसे चन्दनके एक ही वृक्ष से तमाम वन सुगन्धित रहता है, परन्तु यदि पुत्र कुपूत वा कुलक्षण हुआ तो वह अपने तन, मन, धन, मान और कीर्ति आदि को धूल में मिला देगा, इस लिये विवाह में धन आदि की अपेक्षा लडके के गुण कर्म और शील आदि का मिलाना अत्यत उचित है, क्योंकि घन तो इस संसार मे बादल की छाया के समान है, प्रतिष्ठा पतन के रग के सदृश और कुल केवल नाम के लिये है, इस कारण मूलपर सदा ध्यान करने 'परम सुख मिल सकता है अन्यथा कदापि नहीं, देखो | किसी ने सत्य कहा है कि-"एक हि साधे सब सधैं, सब साधे सब जाय ॥ जो तू सींचे मूल को, फूले फले अघाय" ॥ १ ॥ अतः वर और कन्या के ऊपर लिखे हुए गुण को मिला कर विवाह करना उचित है, जिस से उन दोनों की प्रकृति सदा एक सी रहे, क्योंकि यही सुख का मूल है, देखो ! किसी कविने कहा है कि- "प्रकृति मिले मन मिलत है, अन मिल से न मिलाय ||
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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