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________________ १७२ जैनसम्प्रदायशिक्षा | नदी भी हो तो भी उस का पानी खारी हो जाता है, वर्षा ऋतु में नदी के पानी में धूल कूड़ा तथा अन्य भी बहुत से मैले पदार्थ दूर से आकर इकट्ठे हो जाते हैं, इस लिये उस समय वह बरसात का पानी बिलकुल पीने के योग्य नहीं होता है, किन्तु जब वह पानी दो तीन दिन तक स्थिर रहता है और निर्मल हो जाता है तब वह पीने के योग्य होता है । w झाड़ी में बहने वाली नदियों तथा नालों का पानी यद्यपि देखने में बहुत ही निर्मल मालूम होता है तथा पीने में भी मीठा लगता है तथापि वृक्षों के मूल में होकर बहने के कारण उस पानी को बहुत खराब समझना चाहिये, क्योंकि - ऐसा पानी पीने से ज्वर की उत्पत्ति होती है, केवल यही नहीं किन्तु उस जल का स्पर्श कर चलने वाली हवा में रहने से भी हानि होती है, इसलिये ऐसे प्रदेश में जाकर रहने वाले लोगों को वहां के पानी को गर्म कर पीना चाहिये अर्थात् सेर भर का तीन पाव रहने पर ( तीन उबाल देकर ) ठंढा कर मोटे वस्त्र से छान कर पीना चाहिये । 1 बहुत सी नदियां छोटी २ होती हैं और उन का जल धीमे २ चलता है तथा उस पर मनुष्यों की और जानवरों की गन्दगी और मैल भी चला आता है, इस लिये ऐसी नदियों का जल पीने के लायक नहीं होता है, नल लगने से पहिले कलकत्ते की गंगा नदी का जल भी बहुत हानि करता था और इसका कारण वही था जो कि अभी ऊपर कह चुके है अर्थात् उस में स्नान मैल आदिकी गन्दगी रहती थी तथा दूसरा कारण यह भी था कि- बंगाल देश में जल में दाग देने की (दाहक्रिया करने की ) प्रथा के होने से मुर्दे को गंगा में डाल देते थे, इस से भी पानी बहुत बिगड़ता था, परन्तु जब से उस में नल लगा है तब से उस जल का उक्त विकार कुछ कम प्रतीत होता है, परन्तु नल के पानी में प्रायः अजीर्णता का दोष देखने में आता है और वह उस में इसी लिये है कि उस में मलीन पदार्थ और निकृष्ट हवा का संसर्ग रहता है । 'बहुत से नगरों तथा ग्रामों में कुँए आदि जलाशय न होने के कारण पानी की तंगी होने से महा मलीन जलवाली नदियों के जल से निर्वाह करना पड़ता है, इस कारण वहां के निवासी तमाम बस्ती वाले लोगों की आरोग्यता में फर्क आ जाता है, अर्थात् देखो । पानी का प्रभाव इतना होता है कि खुली हुई साफ हवा में रहकर महनत मंजूरी कर ज्वर और तापतिल्ली आदि रोगोंसे प्रायः दुःखी रहते हैं तथा यही हाल बगाल के पास अब वहा जानेवाले लोगों को भी एकवार तो पानी अवश्य ही अपना प्रभाव दिखाता है, यही हाल की झाडियों के जल का भी है ॥ १ - जैसे - शिखर गिरि " पार्श्वनाथद्दिल और गिरनार आदि पर्वतो के नदी नालों के जल को पीनेवाले लोग देश का है, रायपुर आदि २- जैसे दक्षिण हैदराबाद की मूसा नदी इत्यादि ॥
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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