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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ १५३ रीतियों में प्रवृत्त रहते हैं तो उन के बालक भी वैसा ही व्यवहार सीख लेते और वैसा ही वर्ताव करने लगते है, हां यह दूसरी बात है कि माता पिता आदि का ऐसा अनुपयुक्त व्यवहार होने पर भी कोई २ पुण्यवान् सन्तान सब कुटुम्ब वालों से छंट कर सत्सङ्गति के द्वारा उत्तम क्रिया और सव उपयोगी नियमों को सीख लेते है और सद्व्यवहार में ही प्रवृत्त रहते हैं तथा द्रव्यवान् विनयवान् और दानी निकल आते हैं, यह केवल स्याद्वाद है, किन्तु लोकव्यवहार के अनुसार तो मनुष्य को सर्वदा श्रेष्ठ कार्य और सद्गुणों के लिये उद्यम करना और उन को सीख कर उन्हीं के अनुसार वर्ताव करना ही परम उचित है । बहुत से लोग ऐसे भी देखे जाते है कि वे पथ्यापथ्य को न जानने के कारण बीमार हो जाते है, क्योंकि यह तो निश्चय ही है कि-जान बूझ कर बीमार शायद कोई ही होता है किन्तु अज्ञान से ही लोग रोगी बनते है, इस में कारण यही है कि-ज्ञान से चलने में जीव बलवान् है और अज्ञान से चलने में कर्म बलवान् है, इस लिये मनुष्यों को ज्ञान से ही सिद्धि प्राप्त होती है, देखो । सदाचरणरूप सुखदायी योग को पथ्य और असदाचरणरूप दुःखदायी योग को कुपथ्य कहते है, इन दोनों योगों को अच्छे प्रकार से समझ लेना यह तो ज्ञान है और उसी के अनुकूल चलना यह क्रिया है, बस इन्हीं दोनों के योग से अर्थात् ज्ञान और क्रिया के योग से मोक्ष (दुःखकी निवृत्ति) होता है, यह विषय संसारपक्ष और मुक्तिपक्ष दोनों में समान ही समझना चाहिये, देखो । जिस पुरुष ने अपने आत्मा का भला चाहा है उस ने मानो सब जगत् का भला चाहा, इसी प्रकार जिस ने अपने शरीर के संरक्षण का नियम पाला मानो उस ने दूसरे को भी उसी नियम का पालन कराया, क्योंकि पहिले लिख चुके है कि माता पिता आदि वृद्धजनों के मार्ग पर ही उन की सन्तति प्रायः चलती है, इस लिये प्रत्येक मनुष्यका कर्तव्य है कि अपनी और अपनी सन्तति की शरीरसंरक्षा के नियमों को वैद्यक शास्त्र आदि के द्वारा भली भाँति जान कर उन्हीं के अनुसार वर्ताव कर आरोग्य लाभके द्वारा मनुष्यजन्म के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप चारों फलों को प्राप्त करे ॥ यह चतुर्थ अध्याय का-वैद्यक शास्त्र की उपयोगिता नामक प्रथम प्रकरण समाप्त हुआ। द्वितीय प्रकरण-वायुवर्णन ॥ इस संसार में हवा, पानी और खुराक, येही तीन पदार्थ जीवन के मुख्य आधार रूप है, परन्तु इन में से भी पिछले २ की अपेक्षा पूर्व २ को वलवान् समझना चाहिये, क्योंकि देखो । खुराक के खाये विना मनुष्य कई दिन तक जीवित रह सकता है, एवं पानी के पिये विना भी कई घण्टे तक जीवित रह सकता है, परन्तु हवा के विना थोड़ी देर तक
SR No.010052
Book TitleJain Sampradaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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