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बहुत से काम में चेतन जीव भी निमित्त होते हैं, जैसे चिडियों से घोसले का बनना, श्रादमी से मकान बनना, कपड़ा बनना आदि, तथा कही चेतन कार्यों में भी जड पदार्थ निमित्त बन जाता है, जैसे अज्ञानी होने में भांग या मद्य आदि । इस जगत में सदा ही काम होता रहता है। ऐसा नहीं है कि कभी परमाणु रूपसे दीर्घ काल तक पड़ा रहे और फिर बने । जहां जल और तोप का सम्बन्ध होगा, वहां जल शुष्क हो भाफ चनेहोगा | कहीं कभी कोई बस्ती ऊजड़ होजाती है, कहीं कभी ऊजड़ क्षेत्र वस्ती होजाता है। सर्व जगत मे कभी महा प्रलय नही होती। किसी थोड़े से क्षेत्र में पवनादि की तीव्रता से प्रलय की अवस्था कुछ काल के लिए होती हैं, फिर कही वस्ती जमने लगती है। यो सूक्ष्मता से देखा जाय तो सृष्टि और प्रलय सर्वदा होते रहते हैं । इस तरह यह जगत अनादि होकर
अनन्तकाल तक चला जायगा ।
३. जैनधर्म अनादि अनन्त है
जैनधर्म इस जगन में कहीं न कही सदा ही पाया जाता है । यह किसी विशेष काल में शुरू नहीं हुआ है। जम्बूद्वीप + के विदेह क्षेत्र में (जिसका अभी वर्तमान भूगोल- ज्ञाताश्री का पता नहीं लगा है ) यह धर्म सदा जारी रहता है । वहाँ से महान् पुरुष सदा ही देह से रहित हो मुक्त होते हैं । इसी कारण उस क्षेत्रको विदेह कहते हैं । इस भरतक्षेत्र में भी यह धर्म, प्रवाह की अपेक्षा अनादिकाल से है ।
+ जम्बूद्वीप व विदेह का वर्णन जगत की रचना में मिलेगा ।