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२. यह जगत अनादि अनंत है। जगत कोई एक विशेष भिन्न पढार्थ नहीं है, किन्तु चेतन और अचेतन वस्तुओं का समदाय है । जैसे बन वृत्तों के समूह को, भीड़ मनुष्यों के समूह को, सेना हाथी घोड़े रथ पयादों के समूह को कहते है, वैसे ही यह जगत या लोक पदार्थों के समुदाय का नाम है । यह बात बालगोपाल सब जानते है कि जो वस्तु बनती है वह किसी वस्तु से बनती है व जो वस्तु नाश होती है वह किसी अन्यवस्तु के रूप में परिवर्तित होजाती है। अकस्मात् बिना किसी उपादान कारण के न कोई वस्तु बनती है.न कोई नष्ट होकर सर्वथा अभावरूप होजाती है। दूधले घी खोया मलाई बनती है; कपडे को जलाने से राख बनजाती है: मिट्टी, चूना, पत्थगेके मिलने से मकान बनजाता है, मकान को तोडने से मिट्टी लकड़ी आदि पदार्थ अलग २ होजाने हैं । यह सृष्टि का एक अटल और पक्का नियम है कि सत् का सर्वथा नाश और असत् का उत्पाद कभी नहीं होसक्ता, अर्थात् जो मूल पदार्थ जड़ या चेतन है उनका सर्वथा नाश नहीं होता है, नथा जो मूल पढार्थ नहीं हैं वे कभी पैदा नहीं हो सक्ते हैं। लायंस या विज्ञान भी यही मन रखता है।
किसी वस्तु का नाश नहीं होता है। यह जगतपरिवर्तनशील है, अर्थात् इसके भीतर जो चेतन और जड द्रव्य हैं वे सदा अवस्थाओं को बदलते रहते हैं । अवस्थाएं जन्मती और बिगड़ती हैं। मूल द्रव्य नहीं । इसलिए यह लोक सदा से है व सदा चला जायगा तथा अकृत्रिम भी है, क्योंकि जो वस्तु