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________________ (२९५) ५-८ स्वर्ग में ५ हाथ की ६-१० , ४ हाथ की ११-१२ " ३॥ हाथ की १३-१६ " ३ हाथ की ३ अधो अवेयक में २॥ हाथ की ३मध्य अवेयक में २ हाथ की ३ ऊळ |वेयक में १॥ हाथ की अनुदिश, ५ अनुत्तर में १ हाथ की स्वर्गों में देवियों की जघन्य आयु एक पल्य से कुछ अधिक व उत्कृष्ट ५५ पल्य है। स्वर्ग के देवों मे तथा व्यन्तर, भवन व ज्योतिपियों में नीचे ऊँचे पद के भी धारी होते है। वे पदवियाँ निम्न दश है: १ इन्द्र-राजा के समान, २ सामानिक-पिता व भाई समान, ३ जायस्त्रिंश-मन्त्री के समान, ४ पारिप-समा सद समान, ५ आत्मरक्ष-शरीर रक्षक, ६ लोकपालछोटे गवर्नर के समान, ७ अनोक-सेना का रूप रखने वाले, ८ प्रकीर्णक-प्रजा के समान, आभियोग्य वाहन बनने वाले, १० किल्विषिक-छोटे देव । व्यन्तर ज्योतिषियों में भायंत्रिंश व लोकपाल यह दो पद नहीं होते हैं।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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