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• कथन है, जैन लोग इस जगतको जिन छः मूल द्रव्योंका समु. दाय मानते हैं, उन्हीं का विवेचन हैं। वे छ. द्रव्य-[१] जीव (Soul), [२] पुद्गल (matter), [३] धर्मास्तिकाय (methum of motion), [४] अधर्मास्तिकाय (medium of rest), [५] आकाश (space),[६] काल (time ) जोव और पुद्गल का मेल तो संसार है। इन दोनोंका पृथक होनालो मोक्ष है। पुद्गल जीष के साथ कैसे मिलता है व छूटता है । इस कथन को बनाने के लिए जैन दर्शन ने निम्न सात तत्व गिनाए है:-जीव (soul), अजीव ( not soul ), पुद्गल का आना (inflow of matter into soul), बन्ध (पुद्गलका बंधना bondage of matter with soul), संवर (पुद्गल का आते हुए रुकना check of inflow), निर्जरा (पुद्गल का जीव से छूटना shedding off of matter ), मोक्ष (स्वतन्त्रता total Liberation from matter )।
इन सात तत्वोंके विवेचन में सर्व जैनसिद्धांत आजाता है। इस पुस्तक में छः द्रव्य और सात तत्त्वों का जानने योग्य वर्णन किया है। विशेष जानने के लिये द्रव्यसंग्रह, तत्वार्थसूत्र, सर्वार्थसिद्धि, गोम्मट्टसार, पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, समयसार, नियमसार, परमात्माप्रकाश, समाधिशतक, इटोपदेश, ज्ञानार्णव आदि ग्रन्थ देखने योग्य हैं।
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