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का जिनमन्दिर भी है । इनका पोता गजा अशोक भी अपने राज्य के २६ वर्ष तक जैनधर्म का मानने वाला था । पीछे बौद्ध मत धारी हुआ है ।
देहली में जो स्तम्भ है उसके लेखों में जैनधर्म की शिक्षा झलक रही है । कल्हण कविकृत राजतरंगिणी में लिखा है कि अशोक ने काश्मीर में जैनधर्म का प्रचार किया था। राजा अशोक का पोता सम्प्रति भी जैनी था, जिसका दूसरा नाम दशरथ था ।
उड़ीसा व कलिंग देश में जैनधर्म का राज्य वरावर चला आता था । खण्डगिरि की हाथी गुफा का लेख जो सन् ई० से पूर्व दूसरी शताब्दि का है जैन राजा खारवेल या मिनु राज या मेघवाहन का जीवनचरित्र इसमें अति है । उड़ीसा देशमें जैनधर्म के राजा १२ वीं शताब्दि तक होते रहे है।
दक्षिण उत्तर कनाडामें कादम्बवन्श जैनधर्म का मानने वाला था, जो दीर्घकाल से छठी शताब्दि तक राज्य करता रहा, जिस की राजधानी बनवासी थी । उत्तर कनाडा में भटकल और जरसप्पा में जैन राजाओं ने १७ वीं शताब्दि तक राज्य किया है । सन् १४५० में चन्नभैरवदेवी जैन रानी का राज्य था । जिसने भटकल के दक्षिण पश्चिम एक पाषाण का पुल बनवाया था । १७ वी शताब्दि के पूर्व जरसप्पा में भैरवदेवी का राज्य था । गुजगत से सूरत शहर के पास ढेर में जैन राजा दीर्घकाल से १३ वी शताब्दि तक राज्य करते थे, तब वहाँ श्ररव लोगों ने जैनियों को भगाकर अपना राज्य स्थापित किया।
दक्षिण व गुजरात में राष्ट्रकूट वंश ने राज्य किया है,