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(ण ) ब्रह्मचर्य व्रत के पांच-अपने कुटुम्ब की संतान के सिवाय दूसरेके विवाह शादी करानेकी चिन्तामें पडना, वेश्या के साथ सम्बन्ध रखना, व्यभिचारिणी या दूसरेकी स्त्री के साथ राग करना. काम के मुख्य अङ्ग को छोड अन्य अङ्गों से काम चेष्टा करना, काम की तीव्र लालसा रखनी ।
परिग्रह प्रमाण व्रत के पांच-गृहस्थ जन्मभर के लिये क्षेत्र मकान, धन धान्य, सोना चांदी, दासी दास, कपड़ा वर्तन, इन १० वस्तुओं का प्रमाण करता है-१० के पाँच जोड हुए, हर एक जोड़ में एकको बढ़ाकर दूसरे को कम कर लेना, यह ही पाँच टोप है।
जो गृहस्थ इन बातों पर ध्यान रक्खेगा, उसका नैतिक चारित्र राजा प्रजा को हितकारी होगा। महाराज चन्द्रगुप्त मौर्य जैन के नीतिपूर्ण राज्य व उसकी आदर्श प्रजा का वर्णन यूनानी विद्वानों ने अपनी पुस्तकों में बड़ी प्रशंसा के साथ लिखा है । उन्होंने एक स्थल पर लिखा है कि
"भारतवासियों का व्यवहार बहुत सरल था। यज्ञ को छोड़कर वे मदिरा कभी नही पीते थे। लोगों का व्यय इतना परिमित था कि वे सूदपर ऋण कमी नहीं लेते थे। व्यवहारके वे लोग बहुत सच्चे होते थे-गूठ से उन लोगों को घृणा थी।
आपस में मुकदमें बहुत कम होते थे। विवाह एक जोड़े बैल देकर होता था। सब लोग आनन्द से अपना जीवन व्यतीत करते थे। शिल्प वाणिज्य की अच्छी उन्नति थी । राजा और प्रजा में विशेष सदभाव था। राजा अपनी प्रजा के हित-साधन में सदैव तत्पर रहता था । प्रजाभी अपनी भक्ति से राजा को संतुष्ट किये हुएथी।" (चन्द्रगुप्त मौर्य पृ०७५ जयशङ्कर प्रसाद)