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________________ (१७) कायें, ३ लाख श्रावक और ५ लाख श्राविकायें थीं । अनेक देशों में विहार कर प्रभुने धर्म का उपदेश दिया। फिर कैलाश पर्वत पर से १४ दिन तक आत्मध्यान में लीन हो माघ बदी १४ को निर्वाण प्राप्त किया। श्रीऋषभदेव का वंश अर्थात् इक्ष्वाकु व सूर्यवंश बराबर श्री महावीर स्वामी के समय तक चलता रहा। इसी वंश में अनेक तीर्थकर व श्री रामचन्द्र लक्ष्मण आदि भी हुए। ७६, संक्षिप्त चरित्र श्री नेमिनाथ जी हरिवंश की एक शाखारूप यदुवंश में द्वारका के राजा समुद्रविजय थे। उनकी पटरानी शिवा देवी के गर्भ में कार्तिक शुक्ला ६ के दिन १६ स्वप्नों के देखने के साथ श्री नेमिनाथ जी का श्रात्मा जयन्त विमान से अहमिंद्र पद को छोड़कर पाया और श्रावण सुदी ६ को प्रभु का जन्म हुआ। समुद्रविजय के छोटे भाई वसुदेवजीके पुत्र नौवे नारा. ॐ श्री ऋषभदेवके चारित्र का प्रमाण इस तरह है: प्रजापतिर्यप्रथमं जिजीविषुः,शशासकृपयादिषु कर्मसु प्रजा । प्रबुद्धतत्वः पुनः रद्भुतोदयो, ममत्वतो निर्विविदे विदांवरः ॥२॥ स्वदोषमूलं स्वसमाधितेजसा, निनाय योनि. दय भस्मसाक्रियाम् । जगदितत्वं जगतेऽर्थिनेऽजसा, बभूव च ब्रह्म पदामृतेश्वरः ॥ ४॥ (स्वयंभू स्तोत्र ) भावार्थ-जिल प्रजापति ने पहिले प्रजा को कृषि आदि का उपदेश दिया फिर तत्वज्ञानी वैरागी हुए, आत्मसमाधि के तेज से उन्होंने ही अपने प्रात्मा के दोषों को जलाकर जगत को तत्वों का उपदेश दिया और सिद्धपद के ईश्वर हो गए ।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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