________________
( १७६) उपदेश किया था, इसलिये भगवानको इक्ष्वाकु कहते थे। इसीलिये यह वंश इक्ष्वाकु वंश कहलाया।
भगवान ने अपने वंशके सिवाय चार वंश और स्थापित किये । राजा सोमप्रभ को कुरुवंश का स्वामी, हरिको हरिवंश का, अकंपन को नाथवंश का व काश्यप को उग्रवंश का नायक बनाया तथा पुत्रों को भी पृथक् २ राज्य करने को देश नियत कर दिए।
इस ही प्रकार नीतिपूर्वक श्री ऋषभदेव ने ६३ लाख पूर्व तक राज्य किया।
एक दिन भगवान राज्य सभा में बैठे थे, एक स्वर्ग की नीलांजनादेवी सभा में मंगलीक नृत्य करती २-मरण कर गई । इस क्षणिक अवस्था को देखकर प्रभु को वैराग्य होगया, आप बारह भावनाओं का चिन्तवन करने लगे । तव पांचवे स्वर्ग से लौकांतिक देवों ने श्राकर प्रभु की वैराग्य को दृढ करने वाली स्तुति की । भगवान ने साम्राज्य पद बड़े पुत्र भरत को दिया। फिर इन्द्र, भगवान को पालकी पर विराजमान करके बड़े उत्सव से सिद्धार्थ बन में ले गया, वहाँ एक शिला पर बैठ सर्व वस्त्र प्राभूषण उतारकर, केशोंको लोचकर प्रभु ने नग्न अवस्था में मुनि का चारित्र धारण किया। यह चैत बदी का दिन था।
प्रभु के साथ उनके स्नेह में पड़ कर ४००० राजाओं ने भी मुनि भेष धारण किया। भगवान ने ६ मास का योग ले लिया और ध्यानमें मन्न होगये । तब ही भगवान को चौथा मनःपर्ययज्ञान पैदा होगया। वे ४००० राजाभी उसी तरह खड़े हो गये। वे दो तीन मास तक तो खड़े रह सके, फिर घबड़ा