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(१७३) भागलपुर ) से,२३ ३ श्री नेमिनाथ गिरनार (जि० काठियापाड़) से तथा २४ , श्री महावीर पावापुर (ज़ि० बिहार ) से मुक्त हुए हैं। इन सब नीर्थङ्करों का विशेष वर्णन जानने को सामने का नकशा देखिये। ७५. संक्षिप्त जीवनचरित्र श्री ऋषभदेव
यद्यपि हर एक अवसर्पिणी उत्सर्पिणी में २४ तीर्थकर चौथे या तीसरे कालमें क्रम से होते है तथापि इस अवसपिणी को हुंडावसर्पिणी कहते हैं । हुडावसर्पिणी में बहुत सी बातें विशेष होती है। ऐसा काल असंख्यात् अवसर्पिणी पीछे आता है।
इसमें विशेष बात यह हुई कि श्री आदिनाथ या ऋषम देव चौथे काल के शुरू होने में जव नीन वर्ष साड़े आठ माम वाकी थे तब ही मोक्ष चले गये थे। , श्री ऋषभदेव के पिता नाभिराजा थे, इनको १४वाँ कुलकर या मनु कहते हैं। इनके पहले निम्न १३ कुलकर हुप:
१ प्रतिश्रुति २ सन्मति ३क्षेमंकर ४ क्षेमंधर ५ लीम. कर ६ सोमधर ७विमलवाहन - चक्षुष्मान् यशस्वान १० अभिचन्द्र ११ चन्द्राम १२ मरुदेव १३ प्रसेनजित ।
. तीसरे काल में जब एक पल्य का - वां भाग शेष रहा तब से कल्पवृक्षों की कमी होने लगी। तब ही इन कुलकरी ने,जो एक दूसरे के बहुत काल पीछे होते रहे हैं, ज्ञान देकर और लोगों की चिन्तायें मेटी।।
पहिले तीन कालों में यहां भोगभूमि थी। युगल स्त्रो पुरुष साथ जन्मते थे व कल्पवृक्षों से इच्छित वस्तु लेकर