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(५०) देना । पति पत्नी की गुप्त वातों को कहना, झूठा लेख लिखना, अधिक परिमाणमें रक्खी हुई वस्तुको अल्प परिमाण में मांगने पर दे देना, शेष अन्श को जान बूझकर अपना लेना, दो चार की गुप्त सम्मति कषाय से प्रगट कर देना।
३. अचौर्य अणुव्रत-स्थूल चोरी न करना । इसके ५ अतीचार है-दूसरे को चोरी का उपाय बताना, चोरी का माल लेना, राज्य में गड़बड़ होने पर अन्याय ले लेन देन करना, मर्यादा को उलंघना, कमती बढती तोलना नापना, सच्ची में झूठी वस्तु मिला सची कह कर बेचना या झूठा रुपया चलाना।
४ ब्रह्मचर्य अणुव्रत-अपनी स्त्री में संतोष रखना । इसके पांच प्रतीचार बचाना-अपने पुत्र पुत्री सिवाय दूसरों की सगाई विवाह करना, वेश्याओं से सङ्गति रखना, व्यभि. चारिणी पर स्त्रियों में संगति रखना, काम के नियत अङ्ग छोडकर और अङ्गों में चेष्टा करना, स्वस्त्री से भी अतिशय काम चेष्टा करनी।
५. परिग्रह परिमाण अणुवत-अपनी इच्छा तथा आवश्यकता के अनुसार निम्न १० प्रकार की परिग्रह का जीवन पर्यन्त परिमाण कर लेना:
१ क्षेत्र-खाली ज़मीन खेतादि, २ वस्तु-मकानादि, ३. धन-गाय भैंस घोड़ा आदि, ४. धान्य अन्नादि,५. हिरण्य, चाँदी आदि, ६. सुवर्ण-सोना जवाहिरात आदि, ७. दासी, ८. दास, ६. कुन्य कपड़े १०. भांड-वर्तन ।
एक समय में इतने से अधिक न रक्खू गा ऐसा परिमाण