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स्थान व जो कुछ मेरे पास है इस के सिवाय अन्य पदार्थों का मुझे त्याग है, फिर पूर्व या उत्तर की तरफ़ मुख करके हाथ लटकाये सीधा खड़ा हो, नौ दफे णमोकार मंत्र पढ़कर भूमि पर दण्डवत करे। फिर उसी तरह खडा होकर उसी तरह नौ या तीन दफ़े उसी मन्त्र को पढ़ कर, हाथ जोड़कर तीन दफे श्रावर्त और एक शिरोनति करे। जोड़े हुए हाथों को बायें से दाहिने ओर घुमाने को श्रावर्त और उन हाथों पर मस्तक झुकाकर नमने को शिरोनति कहते हैं। ऐसा करके फिर हाथ छोड़कर खड़े २ दाहिनी तरफ़ पलटे, फिर नौ या तीन दफे मन्त्र पढ़ तीन आवर्त एक शिरोनति करे । ऐसा ही शेष दो दिशाओं में पलटते हुए करके फिर पूर्व या उत्तर की तरफ़ मुख करके पद्मासन व अन्य श्रासन से बैठ कर शान्तभाव से सामायिक का पाठ संस्कृत या भाषा का पढ़े, फिर मन्त्रों की आप देवे, धर्मध्यान का अभ्यास करे, जैसा नं० ५१ से ५८ तक में कहा गया है । अन्त में उसी दिशा में खड़े हो नौ दफ़े मन्त्र पढ़कर भूमि पर दण्डवत करे । श्रावर्त शिरोनति का हेतु चारों दिशाओं में स्थित देव, गुरु आदि पूज्य पदार्थों की विनय है। ऐसी सामायिक हर दफे ४८ मिनट करे तो अच्छा है, इतना समय न दे सके तो जितनी देर अभ्यास कर सके करे #
(६) दान - अपने और दूसरे के हित के लिये प्रेम भाव से देना सो दान है। इस के दो भेद हैं :---
* सामायिक पाठ अमितगतिकृत छन्द व भावार्थ सहित ॥ श्राने में दफ़्तर दिगम्बर जैन चन्दावाड़ी सूरत शहर से मिल सकता है ।