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________________ . ( =२ ) भावालव के पांच मुख्य भेद हैं ( १ ) मिथ्यात्व झूठा विश्वास | इसके पांच भेद हैं : --- १. एकान्त - पदार्थ में नित्य श्रनित्य दो स्वभाव होने पर भी एक ही मानना । श्रात्मा को सर्वथा शुद्ध या सर्वथा शुद्ध ही मानना । २. विनय - सत्य असत्य का ज्ञान न करके सर्वही विरोधी सिद्धान्तों से अपना लाभ मानके उनकी विनय करना । जैसे बिना विचारे अरहन्त, बुद्ध, कृष्ण, शिव सब ही की पूजना : ३. संशय - यह शङ्का रखनी कि जैन सिद्धान्त ठीक है या बौद्ध या सांख्य या नैयायिक। किसी का भी विश्वास न होना । ४. विपरीत बिल्कुल धर्म विरुद्ध बात में धर्म मान लेना । जैसे पशुओं की बलि से पुराय होना । ५. अज्ञान - धर्म के सिद्धान्त को समझने की चेन कर के देखा देखी मूर्खता से धर्म में चलना । यह पाँच तरह का मिथ्यात्व प्रगट है तथा शुद्धज्ञानान्दमई श्रात्मा का विश्वास न कर के सांसारिक विषय सुख की श्रद्धा रखनी भी मिथ्यात्व है । (२) अविरति पांच प्रकार है-हिंसा, सत्य, चोरी, कुशील, पदार्थों में ममता या परिग्रह | -- (३) प्रमाद - आत्महित में अनादर, इस प्रमाद के भेद १५ भेदों में से ८० प्रकार बनते हैं-५ इन्द्रिय, ४ क्रोधादि. कषाय, ४ विकथा स्त्री, भोजन, देश, राजा ), १ निद्रा, १ स्नेह ।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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