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( ७६ ) ये पांचों शरीर एक दूसरे से सूक्ष्म है, परन्तु परमाणु अधिक २ हैं । तैजस व कार्मण दो शरीरों को लिये हुए जीव एक स्थूल शरीर से दूसरेमें एक या दो या तीन समयके वीच में लगातार बिना किसी रुकावट के तुरन्त पहुंच जाते हैं। सबसे छोटे कालको समय कहते हैं । जिननी देर में एक परमाणु एक कालाणु से पासवाली कालाणु पर मन्दगति से जाता है वह समय है । एक पलक मारने में असंख्यात समय बीत जाते हैं।
३३. मन और बाणी का निर्माण
जीवों के शब्द व वचन भी भाषावर्गणा जाति के स्कन्धों से बनते हैं। ये स्कन्ध भी सर्वत्र फैले हुए हैं। हमारे होठ नाल के सम्बन्ध से भाषावर्गणा से शब्द बनजाते हैं तथा उनकी तरङ्गे वहां तक जाती है जहां तक धक्का अपना बल रखता है। शब्द भी मूर्तीक जड़ है, क्योंकि वह रुक जाता है। ऐसा हा सायन्स ने भी सिद्ध किया है । मन आंख कान की नरह एक विशेष कमल के श्राकार हृदय के स्थान में मनोवगंणा जाति के पुद्गल स्कन्धों से बनता है जो बहुत सूक्ष्म हैं व लोक में भरे है। जिन जीवों के यह मन होता है वे ही
औदारिक वैक्रियिकाहारक तैजस कार्मणानिशरीराणि ॥३६॥ परम् परम् सूक्ष्मम् ॥ ३७॥ प्रदेशतोऽसंख्येय गुणम् प्राकृतेजसोत् ॥ ३८॥ अनन्त गुणेपरे ॥ ३६॥ अप्र. तीधाते ॥ ४० ॥ अनादि सम्बन्धेच ॥ ४१ ॥ सर्वस्य ॥ ४२ ॥
(त० सू० अ०२)