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________________ या रूखापन जिस परमाणु में जिस समय रहेगा वह किसी से बँधेगा नहीं। जैसे किसी स्कन्ध में ७६० अन्श चिकनाई है, दूसरे में ७६२ अन्श है, तब ही ये दोनों मिलकर एकबन्ध रूप हो जायगे । - इसी बन्ध के नियम से अनेक जाति के स्कन्ध बनते रहते हैं । पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु के परमाणु भिन्न २ नहीं हैं। मूल पुद्गल परमाणुओं मे बने हुए ही यह विचित्र स्क. न्ध है तथा यह परम्पर बदल जाते हैं। जैसे हैड्रोजन ाक्सीजन हवा मिलकर जल होजाता है व जल से हवा होजाती है, पानी जम कर सख्त बर्फ होजाता है, बर्फ का पानी हो जाता है। मेघ की वूद सीपके पेट में पड़कर पथ्वीकाय मोती बन जाता है. इत्यादि। । हर एक स्कन्ध में एक समय में सात गुण पाये जाते हलका या भारी, रूखा या चिकना, ठण्डा या गर्म. नर्म या कठोर: ऐसे ४ स्पर्श, रस १, गन्ध १, वर्ण १ । इस वध के नियमानुसार हमें ५ तरह के स्कन्ध प्रगट दीखते है। चर्नमान सायंसको यह पता लगाना है कि चिकनाई या रूखे पने के अंशों की जाँच कैसे की जावे । म्वाभाविक नियम जैन शास्त्रों में ऐसा कहा हैगिद्धावा लुक्खा वा अणु परिणामा समावा विसमा वा। समदो दुराधिगाजदि वज्झन्तिहि आदि परिहीणा ॥ (प्रवचनसार अ० २ गा०७३) भावार्थ-चिकने या सखे परमाणु सम या विसम हो दो गुण अधिक होने से बंध जाते है । जघन्यगुण वाला नहीं बँधना है। आठ दश आदि नम, नौ सात श्रादि विसम हैं।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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