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चारित्र-विनय-महान आत्माओ के श्रेष्ठ चारित्र का वर्णन सुनते ही रोमांचित होकर अतरग भक्ति प्रकट करना, प्रणाम करना, मस्तक पर अजुलि रखकर आदर प्रकट करना और श्रद्धा-पूर्वक स्वय चारित्र के पालन करने मे तत्पर रहना चारित्र-विनय है। चारित्राचार-पाच महाव्रत, पाच समिति और तीन गुप्ति रूप सम्यक्-चारित्र का पालन करना चारित्राचार कहलाता है। चिकित्सा-दोष-यदि साधु चिकित्सा के उपाय बताकर आहार प्राप्त करे तो यह चिकित्सा-दोष है। चित्रा-पृथिवी-मध्यलोक की एक हजार योजन मोटी पृथिवी, चित्रा-पृथिवी कहलाती है। यह चित्र-विचित्र अनेक प्रकार की धातुओ, मृत्तिका, पाषाण और अनेक मणियो से युक्त हे इसलिए इसे चित्रा-पृथिवी कहते है।
चूर्ण-दोष-यदि साधु शरीर की शोभा बढाने वाले विभिन्न प्रकार के चूर्णो की विधि बताकर आहार प्राप्त करे तो यह चूर्ण-दोष है। चूलिका-जिसमे एक, दो या सव अनुयोग-द्वारो द्वारा कहे गये विषय की विशेष या संक्षिप्त जानकारी दी जाती है उसे चूलिका कहते है। चूलिका के पाच भेद है-जलगता, आकाशगता, रूपगता, स्थलगता ओर मायागता।
चेतना-अनुभव रूप भाव का नाम चेतना है या जिस शक्ति के द्वारा आत्मा ज्ञाता-दृष्टा या कर्ता-भोक्ता होता है उसे चेतना कहते है। चेतना जीव का स्वभाव है। चेतना तीन प्रकार की मानी गयी
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 95