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क्षायिक-दान-दानान्तराय कर्म के नष्ट हो जाने से आत्मा मे अनन्त क्षायिक दान प्रगट होता है जिसके फलस्वरूप अनन्त जीवो का उपकार करने की सामर्थ्य होती है। क्षायिक-चारित्र-चारित्र मोहनीय के क्षय से उत्पन्न होने वाले वीतराग परम यथाख्यात चारित्र को क्षायिक-चारित्र कहते है। क्षायिक-ज्ञान-ज्ञानावरण-कर्म के क्षय से उत्पन्न होने वाले अनन्त ज्ञान को क्षायिक-ज्ञान कहते है। इसे केवलज्ञान भी कहते है। क्षायिक-भाव-जो कर्मो के क्षय से उत्पन्न होता हे वह क्षायिक-भाव कहलाता है । क्षायिक भाव के नो भेद है-क्षायिक-ज्ञान, क्षायिक-दर्शन, क्षायिक-दान, क्षायिक-लाभ, क्षायिक-भोग, क्षायिक-उपभोग, क्षायिक-वीर्य, क्षायिक-सम्यक्त्व ओर क्षायिक-चारित्र।
क्षायिक लाभ-लाभान्तराय कर्म के क्षय से आत्मा मे अनन्त लाभ या क्षायिक-लाभ का प्रादुर्भाव होता है जिसके फलस्वरूप अर्हन्त अवस्था मे शरीर के योग्य अत्यत शुभ, सूक्ष्म और असाधारण पुद्गल स्कध प्रतिसमय प्राप्त होते रहते है। क्षायिक-वीर्य-वीर्यान्तराय कर्म के क्षय से आत्मा में अनन्त वीर्य या क्षायिक वीर्य का प्रादुर्भाव होता है जिसके फलस्वरूप कवली भगवान को चराचर अनन्त पदार्थों को जानने की सामर्थ्य प्राप्त होती है।
क्षायिक-सम्यक्त्व-अनन्तानुवधी क्रोध-मान-माया-लोभ तथा सम्यक्त्व, मिथ्यात्व ओर सम्यक्-मिथ्यात्व इन सात कर्म प्रकृतिया का क्षय होन से आत्मा में जो निर्मल श्रद्धान उत्पन्न होता है उस क्षायिक-सम्यक्त्व
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80 / जनदर्शन पारिमापिक काश