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क्रियाविशाल - जिसमे लेखन कला आदि बहत्तर कलाओ का, स्त्री सवधी चौसठ गुणो का, काव्य- सवधी गुण-दोष - विधि का ओर छद निर्माण कला का विवेचन हे वह क्रिया-विशाल- पूर्व नाम का तेरहवा पूर्व हे ।
क्रीत - दोष - अपनी गाय आदि किसी वस्तु को देकर वदले में आहार सामग्री लेकर साधु को देना क्रीत दोष है।
क्रोध - अपने और दूसरे के घात या अहित करने रूप क्रूर परिणाम को क्रोध कहते है । वह पर्वत रेखा, पृथ्वी रेखा, धूलि रेखा और जल रेखा के समान चार प्रकार का है।
क्रोध - दोष-दाता के सामने क्रोध प्रगट करके यदि साधु आहार प्राप्त करता है तो यह क्रोध नामक दोष है ।
क्षपक-क्षपक श्रेणी पर चढने वाला जीव चारित्रमोहनीय का अन्तरकरण कर लेने पर क्षपक कहलाता है। क्षपक दो प्रकार के हे - अपूर्वकरण-क्षपक और अनिवृत्तिकरण - क्षपक ।
क्षपक-श्रेणी- मोहनीय कर्म का क्षय करता हुआ साधु जिस श्रेणी अर्थात् अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्म-साम्पराय और क्षीण- मोह नामक आठवे, नौवे, दसवे और वारहवे -इन चार गुणस्थानो रूप सीढी पर आरूढ होता है उसे क्षपक श्रेणी कहते है ।
क्षमा-धर्म-क्रोध उत्पन्न कराने वाले कारण मिलने पर भी जो थोडा भी क्रोध नही करता उसके यह क्षमाधर्म है । अथवा क्रोध का अभाव होना ही क्षमा है ।
78 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश